Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

Monday 7 September 2020

On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments
त्रिदिवसीय वेबीनार (पालि-पखवाड़ा, 2020 के अन्तर्गत)

धम्म-लिपि के विविध आयाम
(Different Dimensions of Dhamma-Script)
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19-21 सितम्बर, 2020

‘धम्म-लिपि’ भारत देश की एक अत्यन्त प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण लिपि है। इसे ‘ब्राह्मी-लिपि’ के नाम से भी जाना जाता है। इस लिपि में देवानंपिय सम्राट् अशोक के शिलालेख प्राप्त होते हैं। सर्वविदित तथ्य है कि सम्राट् अशोक के ये शिलालेख विश्व के कल्याणकारी और महानतम सम्राट् के मैत्रीपूर्ण चित्त के निदर्शन हैं। अतः धम्म-लिपि सम्राट् अशोक के करुण-चित्त के निदर्शन-भूत शिलालेखों की वाहिका है।

इस लिपि में विविध प्रकार की सामग्री प्राप्त होती है तथा विविध स्रोतों में इसका प्रयोग किया गया है। शिलालेखों, सिक्कों, ताम्रपत्रों, मृदापात्रों इत्यादि पर इस लिपि द्वारा लिखी गयी पुरातात्त्विक महत्त्व की सामग्री प्राप्त होती है। कालान्तर में इस लिपि का भारत तथा अन्य देशों की लिपियों पर भी गहन प्रभाव पड़ा। आज की आधुनिक लिपियाँ अनेक मायनों में धम्म-लिपि की ऋणी हैं।

प्रतिक्रान्ति के पश्चात् बुद्ध-धम्म के लुप्त होने पर यह लिपि भी लुप्त हो गयी तथा एक समय ऐसा भी आया कि तात्कालिक भारत में इसे पढ़ने वाला कोई नहीं रह गया। इस देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि पूर्ण रूप से विकसित तथा जन-जन में प्रसारित यह लिपि लुप्त हो गयी थी। खैर, कालान्तर में इस लिपि को पढ़ने के अनेक प्रयास किये गये। दिल्ली के सुलतान फीरोजशाह तुगलक (1351-88) ने मेरठ और अंबाला के तोपड़ा गांव से सम्राट् अशोक शिलालेखों को मंगवाकर दिल्ली के फीरोजशाह कोटला तथा कोशके शिकार नामक जगहों पर खड़े करवाया था। उस समय भी इन शिलालेखों की लिपि को पढ़ने के प्रयास हुए थे, किन्तु आज वे मनगढन्त सिद्ध हो गये। 1784 में ‘एशियाटिक सोसाइटी’ की स्थापना के पश्चात् यूरोपीय विद्वानों द्वारा भारत के प्राचीन लेखों का अध्ययन-अनुसन्धान किया जा रहा था। इसी दौरान उन्होंने दिल्ली और इलाहाबाद के 2300 साल पुराने लेख पढ़ने में कठिनाई महसूस हो रही थी। फिर 1837 में एक महान् अंग्रेज विद्वान् जेम्स प्रिंसेप (1799-1840) ने इस लिपि के गूढ़ाक्षरों को पढ़ने में सफलता हासिल की और संयोग से इसी वर्ष जार्ज टर्नर द्वारा महावंस का अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात् प्राचीन भारतीय बौद्ध विरासतों की खोज आरम्भ हुई और एक के बाद एक विरासतें खोजी जाने लगी। आज बुद्ध की धरती भारत पुनः तिरतनों के आलोक से प्रकाशित हो रही है। द्वितीय-बुद्धशासन में यह अनुत्तर सद्धम्म जन-जन के हित-सुख के लिए प्रसरित हो रहा है।
धम्म-लिपि के पढ़ लिये जाने के पश्चात् भारतीय इतिहास और संस्कृति के अनेक लुप्तप्राय तथ्य प्रकट हुए। जिन विभूतियों, राजाओं अथवा विद्वानों को पौराणिक पात्र मानकर उनका वर्णन किया गया-वे वस्तुतः इतिहास-प्रसिद्ध सिद्ध हो गये। अनेक ऐसी किंवदन्तियां या मान्यतायें, जिन्हें ऐतिहासिक करार दिया गया था, वे पौराणिक और कपोल-कल्पित सिद्ध हुई। आज भी बहुत सारी भ्रान्तियां, अन्धविश्वास और मिथ्या-धारणायें भारतीय समाज में मौजूद है, जो पुनर्जागरण-काल से तथाकथित इतिहासकारों, लेखकों और मठाधीशों के द्वारा फैला दी गई थीं। ये बातें एक वर्गविशेष के लाभ की दृष्टि से विकसित तथा प्रचारित की गई थीं। आज भारतीय इतिहास और संस्कृति के तत्त्वों को ‘सबाल्टर्न दृष्टिकोण’ (Subaltern point of view) से देखने की आवश्यकता है। इस दृष्टि को विकसित करने में धम्म-लिपि अपने आप में एक प्रतीक-स्वरूप है। भारतीय मानस में वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और वास्तविक तथ्यों को सत्य के धरातल पर स्थापित करने में धम्म-लिपि का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस मायने यह महत्त्वपूर्ण लिपि शिक्षणीय, अनुसन्धेय, संरक्षण-योग्य और प्रचार-प्रसार करने योग्य है।

धम्म-लिपि एक अत्यन्त व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक लिपि है। इसमें जैसा लिखा जाता है, ठीक वैसा ही पढ़ा भी जाता है। इसी प्रकार यह एक सरल लिपि है। थोड़े से अभ्यास के पश्चात् इस लिपि को आसानी से सीखा जा सकता है। आज कुछ कर्मठ धम्मानुयायियों के प्रयासों से पुनः यह लिपि जन-जन में प्रसारित हो रही है तथा लोकप्रिय हो रही है। बुद्धभाषित पालि-भाषा के साथ-साथ इस लिपि को सीखना बहुत आवश्यक है।

धम्म-लिपि के विषय में आज भी अनेक तथ्य अस्पष्ट तथा भ्रान्त हैं। इस लिपि की प्राचीनता, इसके स्वरूप, इसकी खोज की कथा, नामकरण, प्रमुख लक्षण, अन्य लिपियों पर प्रभाव इत्यादि विषय आज भी अनुसन्धेय हैं तथा निरन्तर संवाद की आवश्यकता का अनुभव कराते हैं। सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि तथा धम्म-लिपि का समीक्षात्मक अध्ययन भी आवश्यक है। भारत में प्रतिदिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ पुरातात्त्विक सामग्री प्राप्त होती है, किन्तु सम्बद्ध विभागों में लम्बी प्रक्रिया के बाद भी इन पर अंकित विषय को नहीं पढ़ा जा सकता है अथवा उसका गलत तरीके से पाठ कर लिया जाता है। आज भारत में इसी प्रकार के अपपाठ अथवा गलत व्याख्या के कारण अनेक ऐतिहासिक तथ्य विपरित दिखाई देते हैं। अनेक बौद्ध-विरासतें विधर्मियों द्वारा हथिया ली जाती है। अतः इस लिपि के जन-जन में प्रसार की आवश्यकता है, ताकि बच्चा-बच्चा इन पुरातात्विक धरोहरों पर अंकित लेखों को पढ़ सके तथा अपनी धरोहर को सुरक्षित करने में अपना योगदान दे सके। इस विषय में अधिक कार्य करने की आवश्यकता निरन्तर प्रतीत होती है। इस हेतु ‘धम्म-लिपि साक्षरता अभियान’ की महती आवश्यकता है। इसी प्रकार तकनीकी के इस युग में विभिन्न तकनीकी टूल्स के विषय में सभी को ज्ञान होना चाहिए तथा ‘आॅनलाईन ब्राह्मी-लिप्यन्तरण’ "https://aksharamukha.appspot.com/#/converter" को भी लोगों में प्रसारित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार धम्म-लिपि के फोण्ट्स् के विषय में भी संवाद की आवश्यकता है।

इन समस्त विषयों को दृष्टिगत रखते हुए 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक आयोजित ‘पालि-पखवाड़ा, 2020’ के अन्तर्गत विविध कार्यक्रमों के अन्तर्गत ‘धम्म-लिपि के विविध आयाम’ विषय पर तीन दिवसीय वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें उक्त विषयों के साथ-साथ धम्म-लिपि के प्रचार-प्रसार हेतु वर्तमान-समय में किये जा रहे कार्यों का निदर्शन भी किया जायेगा तथा इसे सरलतापूर्वक सीखाने हेतु निर्मेय शिक्षण-सामग्री के विषय में भी चर्चा की जायेगी।

‘धम्म-लिपि के विविध आयाम’ इस शीर्षक द्वारा आयोजित इस वेबीनार में आपका हार्दिक स्वागत है। आप भी वेबीनार के संयोजकों से सम्पर्क करके अपना दिनांक 10 सितम्बर, 2020 तक अपना शोध-पत्र भेज सकते हैं। योग्य होने पर इसे प्रकाशित किया जा सकता है।

यथा-समय आपको इस कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा से भी अवगत कराया जायेगा।
संयोजक एवं धम्मलिपि-मित्र
डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल (81264 85505)
इंजी. भारत वनकर (94040 79692)
आयु. अमित मेधावी (89994 67899)





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