Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

सामाजिक-पालि 
(Social Pali)
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'भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान' द्वारा पालि के प्रचार-प्रसार के लिए सामाजिक-स्तर पर अनेक प्रकार के शिक्षा एवं प्रचार सम्बन्धी कार्य किये जा रहे हैं। वस्तुतः पालि-भाषा सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, तात्त्विक और दार्शनिक स्तर पर समाज को प्रभावित करने वाला प्रमुख तत्त्व है। आज समाज में पालि-भाषा का अधिक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है, तथापि पालि-भाषा का समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव है। हमारी मातृभाषाओं, संस्कारों, लोक-परम्पराओं, कहावतों, मुहावरों एवं विश्वासों में पालि की सुगन्ध को स्पष्ट रूप से परिलक्षित किया जा सकता है। बौद्ध-समाज के तो समस्त संस्कार पालि-भाषा में ही सम्पन्न किये जाते हैं, परित्त-पाठ पालि-भाषा में ही किया जाता है तथा इसका सम्पूर्ण साहित्य पालि-भाषा में ही है। अतः इसका अध्ययन-अध्यापन अत्यन्त आवश्यक है। इसी प्रकार समाज को प्रबुद्ध-समाज के रूप में प्रतिष्ठापित करने के लिए भी पालि के अध्ययन-अध्यापन की परम आवश्यकता है। पालि साहित्य में प्रमुखतः बुद्धवाणी रूपी तिपिटक साहित्य एवं उसका अनुषंगिक साहित्य तो प्राप्त होता है ही, इसके साथ व्याकरण, चिकित्सा, छन्द, अलंकार इत्यादि से सम्बद्ध साहित्य भी प्रचुरता से प्राप्त होता है। इनके अध्ययन से निश्चित ही समाज में भगवान् बुद्ध के तत्त्व-ज्ञान के द्वारा शील, समाधि तथा प्रज्ञा का महान् मार्ग लोगों के लिए प्रशस्त होगा तथा समाज बुद्ध की आध्यात्मिक-गहनता को ग्रहण करेगा, साथ ही बुद्धि के स्तर भी प्रबुद्धता को प्राप्त करेगा।

आज भारत में पालि की स्थिति ठीक नहीं है। समाज में ‘पालि’ यह शब्द भी नया-नया सा प्रतीत होता है। लोग पालि के विषय में ठीक से नहीं जान पा रहे हैं। पालि के अध्ययन के लिए भी पर्याप्त संसाधनों का अभाव दिखाई दे रहा है। पालि के अध्ययन-अध्यापन, अनुसन्धान, संवर्धन तथा प्रचार-प्रसार के लिए देष में एक भी पालि-विश्वविद्यालय नहीं है। पालि-विश्वविद्यालय की बात छोड़ भी दे, तो एक पालि-महाविद्यालय तक नहीं है, पालि-महाविद्यालय के प्रश्न को त्याग भी दे, तो एक पालि-विद्यालय तक देश में नहीं है। ऐसे समय में पालि के विकास हेतु हमारी जिम्मेदारी अत्यधिक बढ़ जाती है।

भारत में कुछ विश्वविद्यालयों के विभागों तथा बुद्ध-विहारों में पालि का अध्ययन-अध्यापन चल रहा है। विश्वविद्यालयीन-विभागों में प्राध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों, अध्येताओं तथा शोधार्थियों को पालि को अकादमिक-स्तर (Academic level) पर एक विषय के रूप में अध्यापित किया जा रहा है तथा बुद्ध-विहारों में प्रमुख भिक्खुओं द्वारा श्रामणेरो को पढ़ाया जाता है तथा सुत्तों का संगायन किया जाता है। इसी प्रकार 'भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान' पालि-भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए सामाजिक-स्तर पर अनेक प्रकार के कार्यक्रमों एवं स्तरों के माध्यम से प्रयासरत है।

इस प्रकार तीन स्तरों पर पालि के अध्ययन-अध्यापन का क्रम चल रहा है-अकादमिक स्तर पर, विहारीय-स्तर पर तथा सामाजिक-स्तर पर। अतः पालि भी तीन प्रकार की मानी जा सकती है-
(1) अकादमिक-पालि (Academic Pali)
(2) विहारीय-पालि (Monastic pali)
(3) सामाजिक-पालि (Social Pali)

आज पूरे देश में दूरस्थ-शिक्षा, पत्राचार-शिक्षा या ओपन-शिक्षा में पालि का कोई स्थान नहीं है। भारत में एक भी ऐसा विश्वविद्यालय या विभाग नहीं है, जहाँ दूरस्थ-शिक्षा, पत्राचार-शिक्षा या ओपन-शिक्षा के माध्यम से पालि-भाषा के शिक्षण हेतु कोई उपाधि-पाठ्यक्रम चलाया जा रहा हो। कुछेक शिक्षा-संस्थानों से परिचय-पाठ्यक्रम या डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। अतः आम-लोगों को पालि सीखने की इच्छा होने के बावजूद वे सीख नहीं पा रहे हैं। इसी प्रकार विहारों में भी लोगों को सीखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। पूरे भारत में कोई ऐसा बुद्ध-विहार नहीं है, जहाँ पालि-भाषा का अध्यापन किया जाता हो। अतः भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा पालि को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ‘हर घर पालि-घर घर पालि’ के तहत सामाजिक पालि की अवधारणा के माध्यम से पालि-भाषा का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

हम देखते हैं कि भारत में अनेक ऐसी अनेक घूमन्तु या आदिवासी जातियाँ निवास करती है, जिनकी भाषाओं का कोई लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है, ना ही कोई लिपि भी दिखाई देती है; किन्तु उन्होंने अपनी भाषा को बहुत सहेजकर रखा है। जब भी वे आपस में मिलते हैं, तो अपनी ही भाषा में बातचीत करते हैं, अपने विचारों का आदान-प्रदान अपनी ही भाषा में करते हैं। भाषा जब जीवित रहती है, तो संस्कृति जीवन्त रहती है। इसी तरह भाषा-साहित्य में शाब्दिक-सम्पदा के रूप में ज्ञान-सम्पदा जीवित रहती है। यह दुःख का विषय है कि पालि इतनी समृद्ध भाषा होने के बावजूद इसमें हम बातचीत नहीं कर पा रहे हैं। इसी कारण हमने बहुत बड़ी ज्ञान-सम्पदा को भी खो दिया है।

अतः 'सामाजिक-पालि' के तहत 'घर घर पालि - हर घर पालि' के स्वप्न के साथ प्रतिष्ठान द्वारा इसके सम्भाषण-प्रशिक्षण तथा पालि के व्यवहारिक-व्याकरण को अनेक माध्यमों से प्रस्तुत एवं विस्तारित करते हुए  पालि का शिक्षण-प्रशिक्षण, अनुसन्धान व विकास तथा प्रचार-प्रसार कार्य किया जा रहा है।

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