पालि-प्रचार
(Pali Propagation)
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भाषा विचारों के विनिमय का प्रमुख साधन है। भाषा के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाता है तथा अन्य लोगों के विचारों से अवगत भी होता है। जो भाषा लोगों के द्वारा बोली जाती है, वह विकासमान होती जाती है तथा शब्दों के माध्यम से ज्ञान-सम्पदा का परिवहन करती हुई लोक-कल्याण का माध्यम बन जाती है। ‘भाषा’ यह शब्द पालि में ‘भासा’ के रूप में दिखाई देता है। ‘भासा’ शब्द मूलतः पालि की ‘भास’ धातु से बना है तथा इसका अर्थ होता है - भाषण करना।
जब किसी भाषा को बोला जाता है, उसमें विचारों का विनिमय किया जाता है, उसके द्वारा अपने मन की बात को अन्यों तक पहुँचाया जाता है, अपने विचारों एवं चिन्तन को विस्तारित किया जाता है, इसके माध्यम से लेखन किया जाता है, ग्रन्थों का प्रणयन भाषा द्वारा सम्पादित किया जाता है तथा तत्कालीन ज्ञान व तकनीकी के द्वारा उसे जन-जन तक पहुँचाया जाता है - तब भाषा का विकास होता है तथा उसे स्वतः ही विस्तार प्राप्त होता है।
इसी बात को ध्यान रखते हुए 'भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान' द्वारा मुख्यतः पालि-सम्भाषण (Spoken Pali) का प्रचार किया जा रहा है। पालि-सम्भाषण व्यवहारिक पालि-व्याकरण तथा भाषिक-ज्ञान कौशल का प्रमुख विकास-तत्त्व है। जब कोई व्यक्ति पालि-सम्भाषण का प्रयास करता है, वह धीरे-धीरे पालि के व्याकरण तथा भाषा में कौशल्य प्राप्त करने लगता है।
इसी प्रकार प्रतिष्ठान विविध अवसरों पर पालि की सम्भाषण-षालाओं का आयोजन करता है तथा विविध उपायों से पालि का ‘घर घर पालि-हर घर पालि’ के आधार-वाक्य के साथ प्रचार कर रहा है। विशेषतः सोशल-मीडिया के द्वारा जन-जन तक पालि का ज्ञान पहुँचाने की मुहिम को बहुत सराहना और सफलता प्राप्त हुई है।
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