Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

  • -- Pali is a Sweet, Beautiful and Easy language. -- अहं वदामि पालिभासं. -- Pali is my Pride. --

Saturday 25 April 2020

On April 25, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   1 comment























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पालि शिक्षण चैनल

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पालि कार्यक्रमों का आयोजन-
8.1 धम्मपदुस्सवो (धम्मपदोत्सव) का आयोजन करनाµभदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान तथा इससे सम्बद्ध सभी जिला तथा तहसील ईकाइयों द्वारा फाल्गुन पूर्णिमा के अवसर पर प्रतिवर्ष ‘धम्मपदोत्सव’ का आयोजन किया जायेगा। ‘धम्मपद’ बौद्धधम्म का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे धम्म का प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। विश्व की लगभग समस्त महत्त्वपूर्ण भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है। सम्पूर्ण विश्व में इस ग्रन्थ के प्रति अत्यन्त सम्मान तथा श्रद्धाभाव है। अतः धम्मपद के इस महत्त्व को दृष्टिगत रखते हुए ‘धम्मपदोत्सव’ के अवसर पर धम्मपद का वाचन तथा इसके विविध पहलुओं पर गहन परिचर्चा तथा संगोष्ठियाँ आयोजित की जा सकती है। इस दिन छात्रा-छात्राओं हेतु धम्मपद के विषय में विविध-प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जा सकती हैं।
8.2 अन्तर्राष्ट्रीय-पालि दिवस (प्दजमतदंजपवदंस च्ंसप क्ंल) का आयोजन करनाµभदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा भारत में बौद्ध-धम्म के पुनर्जागरण में श्रेष्ठ भूमिका निभाने वाले तथा अनेक पालि ग्रन्थों के लेखक तिपिटकाचार्य भदन्त धम्मरक्खित जी की जयन्ती के अवसर पर 1 अपै्रल को प्रतिवर्ष ‘अन्तर्राष्ट्रीय-पालि दिवस’ का आयोजन संस्थान के द्वारा किया जायेगा।
8.3 विशिष्ट पालि सेवा सम्मान प्रदान करनाµपालि भाषा के उन्नयन तथा विकास के लिए कार्य करने वाले मनीषियों के लिए संस्थान के द्वारा प्रतिवर्ष 3 (तीन) पुरस्कार प्रदान किये जाने चाहिए। पुरस्कारों का विवरण इस प्रकार हो सकता हैµ
(1) पालि के संवर्धन में ताउम्र महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले एक वरिष्ठ (60 वर्ष से अधिक उम्र वाले) भारतीय विद्वान्,
(2) पालि-क्षेत्रा में महत्त्वपूर्ण योगदान, शोध तथा प्रचार-प्रसार में योगदान करने वाले एक युवा (30 से 40 वर्ष की उम्र वाले) भारतीय विद्वान् तथा
(3) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पालि भाषा के उन्नयन, शोध तथा प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले (50 वर्ष से अधिक उम्र वाले) अन्तर्राष्ट्रीय विद्वान्।
संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष ‘अन्तर्राष्ट्रीय पालि दिवस’ (प्दजमतदंजपवदंस च्ंसप क्ंल) के अवसर पर उक्त प्रकार से पालि-क्षेत्रा में विशिष्ट भूमिका निभाने वाले तीन विद्वानां को सम्मानित किया जा सकता है। इस हेतु प्रशस्ति पत्रा, शाॅल तथा नकद राशि भी उन्हें प्रदान की जा सकती है।
8.4 पालि पखवाड़े (च्ंसप वितजदपहीज) का आयोजन करनाµपालि-पखवाड़े का आयोजन पालि के प्रचार-प्रसार तथा संवर्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। अतः प्रतिवर्ष देवमित्त अनागारिक धम्मपाल की जयन्ती के अवसर पर 17 सितम्बर को ‘विस्स-पालि-भासा-गारव-दिवसो’ (विश्व पालि-भाषा गौरव दिवस) से आरम्भ कर पालि पखवाड़े का आयोजन किया जा सकता है। यह पालि पखवाड़ा प्रतिवर्ष दिनाँक 17 सितम्बर से 1 अक्टूबर तक आयोजित किया जा सकता है। संस्थान अपने स्तर पर पालि पखवाड़े को आयोजित करने के लिए लोगों तथा सामाजिक संस्थाओं को अभिप्रेरित भी कर सकता है।
8.5 पालि स्पर्धाओं (च्ंसप ब्वउचमजपजपवदे) का आयोजन करनाµसंस्थान के द्वारा प्रतिवर्ष अक्टूबर-नवम्बर माह में पालि स्पर्धाओं का आयोजन किया जा सकता है। इस हेतु राष्ट्र-स्तर पर चार स्तरों (कक्षा 6-8, कक्षा 9-12, स्नातक तथा स्नातकोत्तर) पर तिपिटक के ग्रन्थों के पाठ्यों का स्मरण-शक्ति के आधार पर कण्ठपाठ-स्पर्धा, भाषण-स्पर्धा तथा व्याख्या-स्पर्धाएँ कराई जा सकती हैं। इन स्पर्धाओं में प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान पाने वाले विजेताओं को स्वर्ण-पदक, रजत पदक तथा कांस्य पदक सहित क्रमशः रू. 20,000, रू.15,000 तथा रू. 10,000 से सम्मानित किया जा सकता है। इन स्पर्धाओं के आयोजन से पालि भाषा शीघ्र ही युवाओं तथा बच्चों का प्रिय विषय बन जायेगा तथा पालि में उपस्थित नैतिक-शिक्षा से उन्हें जीवन में करणीय-अकरणीय का मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
8.6 पालि नाट्य-महोत्सव (च्ंसप क्तंउं थ्मेजपअंस) का आयोजन करनाµमनुष्य स्वभावतः उत्सव तथा मनोरंजन के साधनों के प्रति आरम्भ से ही आकर्षित रहा है। मनोरंजन के साधनों में साहित्य तथा कला ने अपना एक विशेष स्थान बनाया हुआ है। साहित्य तथा कला के द्वारा मनुष्य का न केवल मनोरंजन ही होता है, अपितु वह इससे सुन्दर ढंग से शिक्षा भी प्राप्त करता है। इस तरह साहित्य मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा का भी उत्तम स्रोत है।
साहित्य में नाट्य-विधा एक महत्त्वपूर्ण विधा है। साहित्य की समस्त विधाओं का आनन्द हम उसे पढ़कर या सुनकर ही ले सकते हैं, किन्तु नाट्य-विधा में हम उसे देख भी सकते हैं। इस प्रकार नाट्य या नाटक देखे व सुने जा सकते हैं। प्रायः देखे हुए दृश्यों की मानव-हृदय पर अमिट छाप पड़ जाती है। अतः पालि साहित्य में भी ऐसे नाट्य-प्रयोग किये जा सकते हैं।
पालि साहित्य में एक प्रकार से ऐसे प्रयोग सर्वथा नवीन ही होंगे, क्योंकि मूल पालि साहित्य में कोई नाटक उपलब्ध नहीं होता। हाँ, नाटकीयता लिए ही अनेक प्रसंग यहाँ अवश्य प्राप्त होते हैं। जो हो, आधुनिक समय में पालि में नाटक लिखे तथा मंचित किये जा सकते हैं तथा उनके व्यवसायिक प्रयोग भी किये जा सकते हैं। अतः संस्थान के द्वारा प्रतिवर्ष पृथक्-पृथक् नगरों में तीन दिवसीय ‘पालि नाट्य-महोत्सव’ के आयोजन की संकल्पना की जानी चाहिए। इस प्रयोग से संस्थान की ख्याति देश-विदेश में प्रसारित होगी। यह कार्यक्रम नवम्बर माह में किया जायेगा।
8.7 विशिष्ट पालि व्याख्यानमाला (ैचमबपंस समबजनतम ेमतपमे वद च्ंसप) का आयोजन करनाµसंस्थान के द्वारा प्रतिवर्ष किसी विशेष अवसर पर पालि के वरिष्ठ विद्वान् द्वारा संस्थान परिसर में विशिष्ट पालि व्याख्यानमाला का आयोजन कराया जा सकता है। इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न नगरों में विशिष्ट पालि व्याख्यानमाला के आयोजन किये जा सकते हैं अथवा आयोजन के लिए विभिन्न संस्थाओं को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा सकती है। यह कार्यक्रम जनवरी-फरवरी माह में किया जायेगा।

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धम्म-पालि-शिक्षक-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं का समायोजन-
पालि भाषा को जन-जन में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए पालि के कुशल शिक्षक एवं प्रशिक्षक तैयार करना परम आवश्यक है। ये प्रशिक्षक ही मुख्यतः गाँव-गाँव, नगर-नगर पहुंचकर अथवा अपने-अपने स्थानों में पालि का अध्यापन करेंगे। अतः ऐसे पालि के शिक्षक-प्रशिक्षक तैयार करने के लिए भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा ‘धम्म-पालि शिक्षक-प्रशिक्षण-अध्ययनशाला’ का आयोजन किया जायेगा। इन अध्ययनशालाओं में प्रशिक्षित अध्येताओं को ‘धम्मपालि शिक्षक’ के नाम से जाना जायेगा। इन प्रशिक्षित शिक्षकों-प्रशिक्षकों को रोजगार प्रदान करने की दृष्टि से भी विस्तृत तथा सुदृढ़ कार्ययोजना बनाते हुए विविध स्थानों या पालि-सम्भासन-सालाओं में सम्प्रेषित किया जायेगा। पालि शिक्षण-प्रशिक्षण को यदि रोजगार से जोड़ा जायेगा, तो निश्चित रूप से इस दिशा में बड़ी सफलता प्राप्त हो सकती है।
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विहारों को शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित करना

भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान गांव-गांव, नगर-नगर ऐसे सभी बुद्ध-विहारों को शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित करना चाहता है, जहां किसी प्रकार की कोई शैक्षणिक गतिविधि या कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं। क्योंकि बिना शिक्षा के विहारों का कोई विशेष महत्त्व नहीं। विहार यदि शिक्षा से अछूते रहकर केवल पूजा-अर्चना के स्थल बनें रहे, तो ऐसे विहार कर्मकाण्ड के निष्प्राण स्थान ही होंगे। ऐसे विहारों का समाज को बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पायेगा। अतः बुद्ध-विहारों में शिक्षा तथा संस्कृति निर्माण से सम्बद्ध गतिविधियों का आयोजन अवश्य ही किया जाना चाहिए।

इस कारण बुद्ध-विहार समाज के लिए (विशेषतः बच्चों के लिए) शिक्षा के केन्द्र-स्थल बनना चाहिए। यदि विहारों का शिक्षाकरण होगा, तो भगवान् बुद्ध की नैतिकता, शील-सदाचार तथा हित-सुख की शिक्षाएँ तथा बाबासाहब डाॅ. आंबेडकर का चिन्तन समाज में समुचित परिप्रेक्ष्य तथा सकारात्मक ढंग से पहुँचाया जा सकेगा। आज नई पीढ़ी को बुद्ध-मार्ग के अनुरूप शिक्षा दी जाये, तो समाज अतीव तीव्रता से विकास कर सकता है। भगवान् तथागत बुद्ध की शिक्षा सार्वकालिक, सार्वभौमिक तथा सार्वजनीन है; इसी कारण प्राणि-मात्र के लिए समानतया कल्याण-कारक है। मानवतावादी तथा वैज्ञानिकता भगवान् की शिक्षा की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसमें प्रचलित धर्म, पन्थ, मत-मतान्तर या सम्प्रदायों के लिए कोई स्थान नहीं, ना ही इसमें कोई जाति-भेद या अन्य कोई भेद विद्यमान है। अतः प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को निःस्वार्थ भाव से धम्म की शिक्षा वितरित की जानी चाहिए।

भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान भिक्खुओं के माध्यम से ही विहारों में निवाररत भिक्खुओं को पालि आदि का प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। इससे भिक्खु समधिक शिक्षित, ज्ञान-सम्पन्न तथा तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण होंगे, जिससे निश्चय ही विश्व के बौद्ध-समुदाय के साथ हम भी कदम-ताल मिला पायेंगे। आज बुद्ध-आंबेडकर के अन्ध-भक्तों की अपेक्षा प्रज्ञावान् भिक्खुओं व अनुयायियों की कई अधिक आवश्यकता है। ज्ञान-सम्पन्न भिक्खुओं और समाज के शिक्षित युवाओं द्वारा विहारों के माध्यम से पालि के साथ-साथ कम्प्युटर-टाइपिंग, पत्राकारिता, राजनीति, समाजदर्शन, अध्यात्म तथा अंग्रेजी जैसे तमाम समसामयिक और प्राचीन तथा तकनीकी विषयों का अध्यापन किया जाना चाहिए। आधुनिक काल के अनुरूप प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए भी विहारों में कक्षाएँ आयोजित की जा सकती है।
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धम्म-पालि-अज्झयनसाला

धम्म-पालि-अध्ययनशाला
(क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववसे)
1. परिचयµ
‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववसे) ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ द्वारा पालि-भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए देश के गाँव-गाँव और नगर-नगर में संचालित प्रचार-संस्थाएँ हैं। प्रतिष्ठान इन धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं के माध्यम से ‘सामाजिक-पालि-अवधारणा’ (ब्वदबमचज व िैवबपंस.च्ंसप) के तहत घर-घर में पालि-भाषा के ज्ञान-आलोक को पहुँचाने का उपक्रम संचालित करता है। जिन लोगों ने विद्यालयों/विश्वविद्यालयों अथवा अन्य तरीकों से पालि की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की हैं, ऐसे लोगों को इन धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं के माध्यम से पालि का अनौपचारिक शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस प्रकार इन अध्ययनशालाओं में ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ समाज के सभी वर्गोंµकृषकों, गृहिणियों, बच्चों, डाॅक्टर्स, इंजीनियर्स, शिक्षक तथा अन्य सभीµको पालि का शिक्षण प्रदान करते हैं।
अध्येताओं की सुविधा तथा उपलब्धता के आधार पर किसी बुद्ध-विहार, भवन अथवा किसी उपासक-उपासिका के घर में यह ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववस) संचालित की जा सकती है।
अध्ययनशाला में 6-6 माह के पाठ्यक्रमों के माध्यम से अध्येताओं को पालि-भाषा के व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा साथ-ही-साथ पालि-साहित्य के विशिष्ट बिन्दुओं का ज्ञान भी प्रदान किया जाता है।
2. दृष्टि (टपेपवद)µ
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पालि-सम्भाषण (ैचवामद च्ंसप) की परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए इसकी व्यवहारिकता के प्रति समाज में जागरुकता बढ़ाना; ताकि इसके आधार पर शील-सदाचार के आचरण-पक्ष (पटिपत्ति) को पुष्ट किया जा सके तथा परियत्ति तथा पालि-विद्या की गरिमा की संस्थापना हो सके; जिससे विश्व-समाज में सुख-शान्ति और मैत्राी-भाव का संवर्धन हो।
3. ध्येय (डपेेपवद)µ
पालि-भाषा को सम्भाषण भाषा (स्पदहनं तिंदबं) के रूप में विकसित करना;
पालि-भाषा के माध्यम से समाज में प्राचीन संस्कृति और मूल्यों की स्थापना करना;
बचपन से ही पालि-भाषा के शिक्षण की सुगमता से उपलब्धता;
‘सामाजिक पालि अवधारणा’ के अनुसार औपचारिक रूप से पालि-अध्ययन में अक्षम लोगों तक पालि-भाषा तथा साहित्य का ज्ञान-आलोक पहुँचाना;
बुद्ध-विहारों को शिक्षण-केन्द्रों के रूप में विकसित करना;
पालि-भाषा को समाज में शिक्षा के प्रमुख स्रोत के रूप में विकसित करके इसके माध्यम से नैतिक शिक्षा का समाज तक प्रचार करना;
समाज में पालि-भाषा, साहित्य और परम्परा को स्थापित करके रोजगार के अवसर विकसित करना;
पालि-भाषा के शिक्षण के माध्यम से समाज में बन्धुत्व, सौहार्द, उत्साह और पारस्परिक-प्रेम संवर्धित करना;
पालि-भाषा से सम्बन्धित उत्सवों के विषय में अनुसन्धान करके इन्हें मनाये जाने हेतु समाज में प्रचार-प्रसार करना;
पालि-भाषा की स्पर्धाओं के माध्यम से समाज को प्रबुद्धता से सम्पन्न करना;
समय-समय पर समाज-कल्याण के कार्य करनाµयथा-वृक्षारोपण, रक्त-दान शिविर, आपदाओं के समय सहायता प्रदान, विकास कार्य करना इत्यादि।
4. कार्यक्षेत्राµ
पालि भाषा के वैश्विक-स्वरूप को देखते हुए ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ द्वारा सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ पालि-भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विदेशों में भी कार्य किया जायेगा।
5. उद्देश्य (व्इरमबजपअमे)µ
5.1  पालि-भाषा को लोक-भाषा का स्वरूप प्रदान करके इसे लोकव्यापी बनाना, ताकि जनता द्वारा इसमें निहित ज्ञान-राशि को उसके मूल रूप में समझने हेतु कौशल विकसित किया जा सके।
5.2  पालि तथा बुद्ध-धम्म में उपलब्ध साहित्य के माध्यम से समाज में शील-सदाचार, बन्धुत्व, मैत्राी और समता के तत्त्वों को प्रचारित करना तथा उन्हें धारण करने हेतु सम्प्रेरित करने हुए समाज को प्रबुद्धता की ओर अग्रेसर करना।
5.3  देश के समस्त नगरों और गाँवों में पालि-भाषा के शिक्षण-केन्द्रों के रूप में संचालित ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ माध्यम से पालि-भाषा के ज्ञान को सर्वसुलभ बनाना।
5.4  ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ माध्यम से पालि-भाषा के माध्यम से समाज में एकता स्थापित करना और आपस में संवाद कायम करना।
5.5  विपस्सना-केन्द्रों की तर्ज पर, पालि-विद्या के विकास तथा व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए देश के विभिन्न नगरों में शान्तिमय तथा स्वच्छ वातावरण में स्थायि-रूप से ‘पालि-सम्भासन-साला’ (ब्मदजमते व िैचवामद च्ंसप) स्थापित करना तथा उनमें आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा अनवरत रूप से महीने में दो बार दस या पन्द्रह दिवसीय पालि-सम्भाषण-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं के आयोजन की व्यवस्था की जा सके।
5.6  आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा पालि के वैश्विक प्रचार-प्रसार हेतु मिशनरी के तौर पर प्रशिक्षक तैयार करने के लिए ‘पालि-शिक्षक-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं’ (ैबीववसे व िच्ंसप जमंबीमते ंदक ज्तंपदमते) के आयोजन की समुचित व्यवस्था करना तथा इन प्रशिक्षकों के लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पालि में रोजगार का विकास करना।
5.7  देश के विभिन्न स्थानों पर समान उद्देश्य पर कार्य करने वाली संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बनाते हुए पालि एवं धम्म के प्रचार-प्रसार तथा समुन्नयन के लिए कार्य करना तथा शैक्षणिक रूप से किसी संस्था से असम्बद्ध समाज को पालि भाषा का शिक्षण-प्रशिक्षण उपलब्ध कराना।
3.8  इसके अतिरिक्त उन सभी उत्तरदायित्वों एवं कार्यों का सम्पादन करना, जो पालि-भाषा तथा धम्म की व्यापकता के लिए आवश्यक हो तथा समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए आवश्यक हो।
6. लक्ष्य (।पउे)µ













7. धम्म-पालि-अध्ययनशाला की केन्द्रीय कार्य-पद्धति एवं नियमावलीµ
‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ सम्पूर्ण भारत में ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववसे) का संचालन करता है। धम्म-पालि-अध्ययनशाला का संचालन देश के सभी गाँवों-कस्बों या नगरों-उपनगरों में किया जा सकता है। ‘घर-घर में पालि अभियान’ के तहत देश में हर जगह ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का संचालन किया जा सकता है, बशर्ते उस स्थान में पालि पढ़ने के इच्छुक अध्येताओं की संख्या कम-से-कम 25 होनी चाहिए।
इन ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ को जगह-जगह उद्घाटित करने के लिए पालि तथा धम्म के प्रति समर्पित तथा योग्य उपासक-उपासिकाओं से इस हेतु आवेदन-पत्रा आमन्त्रिात किये जाते हैं। आवेदन-पत्रों के आधार पर योग्य उपासक/उपासिका का ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ (क्ींउउं.च्ंसप.ज्मंबीमत) के रूप में चुना जाता है। ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ ही धम्म-पालि-अध्ययनशाला का मुख्य-आधार होता है।
धम्म-पालि-शिक्षक अध्ययनशाला के समुचित संचालन और प्रबन्धन के लिए उस स्थान में एक ‘धम्म-पालि- अध्ययनशाला-समिति’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववस ब्वउउपजजमम) का गठन करता है। इस समिति में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सह-सचिव, कोषाध्यक्ष, प्रचार-प्रमुख तथा संगठक होने चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक पदेन इस समिति का संयोजक होता है। यह समिति बाद में ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान की ईकाई’ के रूप में भी कार्य करती है। समिति ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ के संचालन और प्रबन्धन में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में सहायता करती है। साथ ही समिति पालि के व्यापक प्रचार के लिए प्रेस-वार्ता, प्रेस-नोट, बैनर, फ्लेक्स, पांपलेट्स इत्यादि प्रचार-तन्त्रों के माध्यम से सूचना प्रसारित करती है।
गठन के पश्चात् उक्त समिति के माध्यम से ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का किसी सुविधाजनक और योग्य स्थान में संचालन किया जाता है। ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाएँ’ किसी बुद्ध-विहार, भवन अथवा किसी उपासक-उपासिका के घर में सुविधानुसार संचालित की जा सकती है।
इन धम्म-पालि-अध्ययनशाला में पालि के क्रमिक ज्ञान को आधार बनाकर 6-6 माह के पाठ्यक्रम तैयार किये गये हैं। ये पाठ्यक्रम ‘पाठचरिया’ कहे जाते हैं।
ये पाठचरियाएँ इस प्रकार हैंµ
पाठचरियायें (ब्वनतेमे)µ
1. पालि-वोहार-पाठचरिया
2. पालि-×ााण-पाठचरिया
3. पालि-सुत्त-पाठचरिया
4. पालि-विदु-पाठचरिया
प्रत्येक पाठचरिया की अवधि 6-6 माह की हैं। ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का प्रमुख उद्देश्य पालि-भाषा को लोकभाषा बनाना तथा इसका व्यवहारिक ज्ञान समाज तक पहुँचाना है। इसी बात को दृष्टि में प्रस्तुत पाठ्यक्रम की संरचना की गई है। अतः अध्येता को क्रमिक आधार पर इन अध्ययनशालाओं में व्यवस्थित और सुसंगठित पाठ्यक्रम के आधार पर अध्ययन करना होता है। प्रथम पाठचरिया को सफलतापूर्वक पढ़कर अध्येता द्वितीय पाठचरिया का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। फिर क्रमशः तृतीय तथा चतुर्थ पाठचरिया का अध्ययन किया जा सकता है।
इन पाठ्यक्रमों में प्रथम छ-माही पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम पालि का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया। द्वितीय छ-माही पाठ्यक्रम में पालि भाषा के व्याकरण तथा साहित्य के विषय में बताया जाता है। तृतीय छ-माही में पालि परित्त के साथ प्रमुख सुत्तों एवं गाथाओं का अध्यापन किया जाता है। चतुर्थ छ-माही में पालि-व्याकरण के अन्तर्गत सन्धि, समास, छन्द एवं अलंकारादि का अध्यापन किया जाता है। इन पाठ्यक्रमों में अध्येताओं को पालि-भाषा के व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा साथ-ही-साथ स्थान-स्थान पर नैतिक शिक्षा के आधार पर पालि-साहित्य के विशिष्ट बिन्दुओं के विषय में भी जानकारी प्रदान की जाती है।
इन पाठचरियाओं में पालि-भाषा तथा साहित्य के साथ-साथ परियत्ति-विद्या (बुद्ध-वाणी या तिपिटक-साहित्य) का ज्ञान भी प्रदान किया जाता हैं तथा अध्येताओं को पटिपत्ति (विपस्सना विद्या के साथ शीलों का व्यवहारिक अभ्यास) और पटिवेध (प्रज्ञा के द्वारा सत्य के साक्षात्कार) के अभ्यास के लिए भी सम्प्रेरित किया जाता है।
संक्षेपतः ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ धम्म-पालि-अध्ययनशाला की अवधारणा के आधार पर ‘समाज द्वारा समाज के लिए पालि’ पर आधारित है। इसमें बिना किसी प्रकार की सरकारी या अन्य संस्थाओं की वित्तीय सहायता के सम्पूर्ण देश में पालि-भाषा को पहुँचाने के कार्य में संलग्न है।
8. धम्म-पालि शिक्षकµ
‘धम्म-पालि-शिक्षक’ (क्ींउउं.च्ंसप.ज्मंबीमत) धम्म-पालि-अध्ययनशाला का मुख्य-आधार है। धम्म-पालि- अध्ययनशाला के संचालन तथा प्रबन्धन का मुख्यतः दारोमदार धम्म-पालि-शिक्षक के कन्धों पर ही होता है। धम्म-पालि-शिक्षक के रूप में नियुक्त किये जाने के पश्चात् वह ‘धम्म-पालि- अध्ययनशाला-समिति’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववस ब्वउउपजजमम) का गठन करता है तथा धम्म-पालि-अध्ययनशाला के संचालन के लिए किसी बुद्ध-विहार, विद्यालय, उपासक/उपासिका के निवास-स्थान अथवा अन्य किसी समुचित स्थान की तलाश करके सप्ताह में एक दिन (3-4 घण्टे) अथवा प्रतिदिन सुबह या शाम को (1-2 घण्टे) पालि-कक्षाओं का संचालन करता है।
पालि-कक्षाओं के संचालन के लिए उसे पालि-भाषा तथा साहित्य में ठीक प्रकार से प्रशिक्षित तथा ज्ञान-सम्पन्न होना होता है। इस हेतु ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ के द्वारा धम्म-पालि-शिक्षकों को पालि भाषा सीखाने हेतु समय-समय पर ‘पालि सम्भाषण प्रशिक्षण अध्ययनशाला’ और ‘पालि-उन्मुखीकरण कार्यक्रम’ किये जाते हैं।
धम्म-पालि-शिक्षक में निम्नोक्त अर्हताएँ होनी आवश्यक हैµ
8.1 शील-पालनµ
एक धम्म-पालि-शिक्षक की शीलाचरण और सदाचार के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक को अपने व्यवहारिक जीवन में पाँच शीलों का क्षण-क्षण में स्मृति रखते हुए पालन करना होता है।
पाँच शील इस प्रकार हंैµ
(प) पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामिµमैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
(पप) अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामिµमैं चोरी करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
(पपप) कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामिµमैं काम-व्यभिचार न करने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
(पअ) मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामिµमैं झूठ बोलने, कठोर-वचन बोलने, बकवास करने तथा चुगली करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
(अ) सुरा-मेरय-मज्ज-प्पमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामिµमैं कच्ची या पक्की शराब, मादक द्रव्यों के सेवन तथा प्रमादकारी वस्तुओं के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
एक धम्म-पालि-शिक्षक को न केवल स्वयं के कल्याण के लिए, अपितु सर्वजन-कल्याण के लिए शीलों का पालन करना चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक का आचरण समाज में एक आदर्श की तरह होता है। शील-पालन से परिशुद्ध धम्म-पालि-शिक्षक समाज के लिए एक मिसाल बन जाता है। लोग उसे देखकर स्वयं भी शीलवान् और बुरी आदतों से दूर होने लगते हैं।
शील-पालन सीखने और अभ्यास करने के लिए धम्म-पालि-शिक्षक को 10 दिवसीय विपस्सना साधना शिविर करना आवश्यक है।
विपस्सना साधना शिविर करने से उसे धम्म तथा पालि का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।
8.2 प्रचार के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति जज्बाµ
सद्धम्म तथा पालि भाषा के व्यापक प्रचार के प्रति धम्म-पालि-शिक्षक में दृढ़ इच्छा-शक्ति होनी आवश्यक है। दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर संकल्प के बल पर ही किसी कार्य को साधा जा सकता है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ एक अलाभकारी गैर-सरकारी संगठन है। इसके सभी कार्यकर्ता बिना किसी वित्तीय लाभ के धम्म और पालि के प्रचार-प्रसार, संवर्धन और विकास के लिए कार्य करते हैं।
धम्म-पालि-अध्ययनशालाएँ इसी प्रतिष्ठान का अंग होने के कारण इसके लिए धम्म-पालि-शिक्षक को भी किसी प्रकार का वेतन नहीं दिया जाता है। सभी धम्म-पालि-शिक्षक बिना किसी आर्थिक लाभ के स्वप्रेरित होकर अपनी इच्छा-शक्ति और संकल्प के बल पर धम्म और पालि के प्रचार-प्रसार के लिए समय-दान करते हैं।
यह सत्य है कि सद्धम्म और पालि के प्रचार के लिए धम्म-पालि-शिक्षक को कोई वित्तीय लाभ प्राप्त नहीं होता है; किन्तु यह भी सत्य है कि धम्म और पालि के प्रचार के लिए धम्म-पालि-शिक्षक द्वारा किये गये कार्यों से उसके व्यक्तित्व विकास पर बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा वह धम्म तथा पालि सीखने का सौभाग्य प्राप्त करता है और उसे इसे समाज में बाँटकर अपनी पारमिताओं को बढ़ाने का अद्वितीय लाभ प्राप्त होता है।
8.3 शैक्षणिक-अर्हताएँµ
एक धम्म-पालि-शिक्षक बनने के लिए किसी भी विषय में स्नातक-परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक है।
8.4 आयु-सीमाµ
एक धम्म-पालि-शिक्षक बनने के लिए आयु-सीमा 20-45 वर्ष है।
9. धम्म-पालि-शिक्षक के प्रमुख कार्यµ
‘धम्म-पालि-शिक्षक’ की समाज निर्माण में महती भूमिका है। धम्म-पालि-शिक्षक के द्वारा किये गये कार्य वस्तुतः ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के ही कार्य हैं। अपने सभी व्यक्तिगत कार्यों का निर्वाह करते हुए वह धम्म-पालि-शिक्षक समाज-निर्माण में अपनी भूमिका का भी निर्वाह करता है। आने वाले 10-15 वर्षों में पालि के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में धम्म-पालि-शिक्षक अपनी उत्तम सेवा प्रदान करता है। आज समाज में बहुत बड़ा परिष्कार, स्वाभिमान, आत्म-विश्वास और खुलापन आया है। इसी को आगे बढ़ाते हुए अब समाज को ‘प्रबुद्ध समाज’ की ओर एक कदम आगे लेकर जाना आवश्यक है। इस हेतु पालि-भाषा एक अति-उत्तम और विशिष्ट रचनात्मक साधन है।
पालि-भाषा पूर्णतः वैज्ञानिकता, नैतिकता और लोक-कल्याण की भाषा है। यह भाषा किसी समय इस देश के बहुत बड़े भू-भाग में जन-भाषा थी तथा इसी भाषा की व्यवहारिकता, संवादात्मकता और लोकप्रियता के कारण महाकारुणिक तथागत भगवान् गौतम बुद्ध ने अपने अनुपम धम्म को इसी के माध्यम से जन-जन में वितरित किया। इसके द्वारा धम्म-पालि-शिक्षक अनेक रचनात्मक एवं परिष्कारात्मक कार्य कर सकता है।
एक धम्म-पालि-शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के पश्चात् उसे अवैतनिक रूप से पालि के संवर्धन के लिए निम्नोक्त कार्य करने होते हैंµ
प्रमुख कार्यµ
(प) धम्म-पालि-अध्ययनशाला-समिति का गठनµ
(पप) धम्म-पालि-अध्ययनशाला में अध्ययन करने वाले सम्भावित अध्येताओं की सूची का निर्माणµ
(पपप) धम्म-पालि-अध्ययनशाला का नियमित संचालन और प्रबन्धनµ
(पअ) अध्येताओं के मन में पालि-भाषा के प्रति श्रद्धा जागृत करनाµ
(अ) अध्येताओं की शंकाओं और जिज्ञासा का समाधानµ
सहायक कार्यµ
(अप) समाज में निरन्तर मेल-मिलाप और एकता का प्रयासµ
(अपप) पालि-आधारित उत्सवों का आयोजनµ
(अपपप) पालि-स्पर्धाओं का आयोजन, संचालन और प्रबन्धनµ
(पग) पालि-व्याख्यानमाला का आयोजनµ
(ग) धम्मपद का कण्ठस्थीकरण करानाµ
(गप) ई-पालि के प्रति समाज में जागरुकता लानाµ
(गपप) पालि-संस्थाओं के निर्माण के प्रति प्रयासµ
(गपपप) पत्राचार-पाठ्यक्रमों के संचालन में सहायताµ
(गपअ) भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान से प्राप्त निर्देशों का अनुपालनµ

On April 25, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments
प्रमुख गतिविधियाँ एवं कार्यक्रम 
(Main Activities and Programmes)


भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान अपने उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कार्यक्रमों, गतिविधियों एवं क्रियाकलापों में कार्यरत है-

1. ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ का संयोजन तथा आयोजन-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान पालि-भाषा को सम्भाषण-भाषा (Spoken language) का स्वरूप प्रदान करने तथा समाज के सभी वर्गों में पालि की शिक्षा उपलब्ध कराने की दृष्टि से वर्ष 2015 से देश के विविध स्थानों में दस अथवा पन्द्रह दिवसीय आवासीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन कर रहा है। अध्ययनशाला की संकल्पना, पाठ्यक्रम-संरचना तथा प्रशिक्षण-प्रविधि का निर्माण प्रसिद्ध पालि एवं बौद्ध विद्वान् डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल के द्वारा किया गया है तथा वे ही पालि-सम्भाषण का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।
प्रतिष्ठान द्वारा अब तक आयोजित की जा चुकी अध्ययनशालाओं का विवरण इस प्रकार है-
(1) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali), महाप्रज्ञा बुद्धविहार, धम्मकीर्ति नगर, (नागपुर)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा नागपुर की पावन-धरा पर महाप्रज्ञा बुद्धविहार, धम्मकीर्ति नगर, दत्तावाड़ी, नागपुर में दिनाँक 02 नवम्बर, 2015 से दिनाँक 16 नवम्बर, 2015 तक प×चदश दिवसीय आवासीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन किया गया। इस अध्ययनशाला में 50 प्रशिक्षणार्थियों ने नियमित आवासीय पालि प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा लगभग 20 प्रशिक्षणार्थी अपने घर से आकर अथवा समय-समय पर प्रशिक्षण प्राप्त करते रहें।
(2) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali), दीक्षाभूमि, चन्द्रपुर (महा.)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा डाॅ. अम्बेडकर एज्युकेशन सोसायटी के तत्त्वावधान में चन्द्रपुर की पावन दीक्षाभूमि में दिनाँक 04 अक्टूबर, 2016 से दिनाँक 14 अक्टूबर, 2016 तक दश दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन किया गया। इस अध्ययनशाला में लगभग 100 प्रशिक्षणार्थियों ने नियमित आवासीय पालि प्रशिक्षण प्राप्त किया।
(3) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali), धम्मभूमि, येनबोड़ी, बल्लारशाह, चन्द्रपुर (महा.)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा धम्मभूमि विपस्सना साधना केन्द्र, येनबोड़ी, बल्लारशाह (चन्द्रपुर) में दिनाँक 28 मई, 2017 से दिनाँक 06 जून, 2017 तक दश दिवसीय आवासीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन किया गया। इस अध्ययनशाला में 50 प्रशिक्षणार्थियों ने नियमित आवासीय पालि प्रशिक्षण प्राप्त किया।
(4) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) ग्राम-पाथरवाड़ा, कटंगी, बालाघाट (म.प्र.)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा समता सैनिक दल, शाखा-कटंगी के तत्त्वावधान में बुद्ध-विहार, ग्राम-पाथरवाड़ा, कटंगी, बालाघाट (म.प्र.) में दिनाँक 07 जून, 2017 से दिनाँक 14 जून, 2017 तक आठ दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (ज्तंपदपदह ेबीववस वद ैचवामद च्ंसप) का सफल आयोजन किया गया। इस अध्ययनशाला में लगभग 55 प्रशिक्षणार्थियों ने नियमित पालि प्रशिक्षण प्राप्त किया।
(5) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) धम्मकानन विपस्सना केन्द्र, रेंगाटोला, बालाघाट (म.प्र.)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा धम्मारण्य ट्रस्ट के तत्त्वावधान दिनाँक 24 जून, 2018 से दिनाँक 02 जून, 2018 तक दस दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन किया गया।
(6) ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) महाप्रज्ञा बुद्धविहार, धर्मकीर्ति नगर, दत्तावाड़ी, नागपुर (महा.)-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा महाप्रज्ञा बुद्ध विहार के सहयोग से दिनाँक 04 जून, 2018 से दिनाँक 13 जून, 2018 तक दस दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) का सफल आयोजन किया गया।
2. ‘पालि-पदस्सिनी’ (Exhibition on Pali) का आयोजन-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा पालि-भाषा को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से ‘पालि-पदस्सिनी’ (Exhibition on Pali) का आयोजन करता है। इस प्रदर्शिनी में लगभग 1000 से अधिक चित्रामय शब्दावली दी गई, जो सहज ही प्रशिक्षणार्थियों एवं आगन्तुकों आकर्षित कर लेती है।
अब तक निम्नोक्त स्थानों पर ‘पालि-पदस्सिनी’ (Exhibition on Pali) का आयोजन किया जा चुका है-
(1) महाप्रज्ञा बुद्धविहार, धम्मकीर्ति नगर, दत्तावाड़ी, नागपुर में दिनाँक 02 नवम्बर, 2015 से दिनाँक 16 नवम्बर, 2015 तक आयोजित पञचदश दिवसीय आवासीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण- अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) के अवसर पर,
(2) डाॅ. अम्बेडकर एज्युकेशन सोसायटी के तत्त्वावधान में चन्द्रपुर की पावन दीक्षाभूमि में दिनाँक 04 अक्टूबर, 2016 से दिनाँक 14 अक्टूबर, 2016 तक आयोजित दश दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) के अवसर पर,
(3) धम्मभूमि विपस्सना साधना केन्द्र, येनबोड़ी, बल्लारशाह (चन्द्रपुर) में दिनाँक 28 मई, 2017 से दिनाँक 06 जून, 2017 तक आयोजित दश दिवसीय आवासीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) के अवसर पर,
(4) समता सैनिक दल, शाखा-कटंगी के तत्त्वावधान में बुद्ध-विहार, ग्राम-पाथरवाड़ा, कटंगी, बालाघाट (म.प्र.) में दिनाँक 07 जून, 2017 से दिनाँक 14 जून, 2017 तक आयोजित आठ दिवसीय ‘पालि-सम्भासन-पसिक्खण-अज्झयनसाला’ (Training school on Spoken Pali) के अवसर पर,
(5) जेतवन-पर्यटन स्थल, हिवरी, यवतमाल (महाराष्ट्र) में दिनाँक 18 अगस्त, 2017 को ‘विट्ठलराव बंसोड़ पालि प्रशिक्षण संस्थान’ तथा भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के अन्तर्गत ‘पालि-सम्भासन-साला’ के उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर,
3. ‘पालि-सम्भासन-साला’ (Center of Spoken Pali) की स्थापना-
महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में जेतवन-पर्यटन स्थल, हिवरी में भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के पालि-भाषा के व्यवस्थित और स्थायी प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की दृष्टि से ‘पालि-सम्भासन-साला’ स्थापित की गई। दिनाँक 18 अगस्त, 2017 को उक्त ‘पालि-सम्भासन-साला’ का उद्घाटन कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस अवसर पर यहाँ ‘विट्ठलराव बंसोड़ पालि प्रशिक्षण संस्थान’ का उद्घाटन भी किया गया, वाकि यहां विभिन्न प्रकार के पालि के कार्यक्रम तथा प्रशिक्षण सम्पन्न किये जा सके।
4. पालि की शिक्षण सामग्री का निर्माण एवं प्रकाशन-
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल के लेखन तथा सम्पादन में अनेक प्रकार की सरल, आकर्षक और विविधता-पूर्ण शिक्षण-सामग्री का निर्माण किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत अनेक स्तरों पर शिक्षण सामग्री के निर्माण का कार्य चल रहा है। शीघ्र ही उक्त उक्त शिक्षण-सामग्री का प्रकाशन किया जायेगा।
प्रकाशन हेतु प्रतिष्ठान के सहयोगी निकाय के रूप में ‘धम्म-पालि प्रकाशन’ की स्थापना की गई है। धम्म-पालि प्रकाशन के द्वारा इन शिक्षण-सामग्रियों का प्रकाशन किया जायेगा। धम्म-पालि प्रकाशन का ध्येय-वाक्य है-‘धम्मप्पचाराय पालिप्पचाराय’।

On April 25, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   1 comment


भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान

(Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation)



परिचायिका

(Introduction)



भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि-संवर्धन-प्रतिष्ठान पालि संवर्धन प्रतिष्ठान
(Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation)

सौगतगेहम्, ग्राम-उमरी, पोस्ट-अगासी,

तह.-कटंगी, जिला-बालाघाट

(म.प्र.) 481 445



1. परिचय-

भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि-संवर्धन-प्रतिष्ठान (Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation) एक अशासकीय शैक्षणिक, धम्मिक और सामाजिक संगठन है। यह प्रतिष्ठान पूर्णतः अलाभकारी संगठन है। इसकी संस्थापना 14 अक्टूबर, 2011 को सौगतगेहम्, उमरी (मध्यप्रदेश) में बुद्ध-धम्म तथा पालि-भाषा के वैश्विक प्रचार-प्रसार तथा संवर्धन की दृष्टि से किया गया। प्रतिष्ठान के निर्माण के साथ ही इसके द्वारा ‘धम्म-सन्देश’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया गया, जिसमें भगवान् बुद्ध की मानवतावादी शिक्षा को मौलिक रूप में प्रस्तुत करने का कार्य किया जा रहा है। इस पत्रिका के प्रकाशन का मुख्य ध्येय भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं का मौलिक रूप में प्रस्तुतीकरण करना है।

प्रतिष्ठान भारत की प्राचीन और शास्त्राीय भाषा ‘पालि’ के उन्नयन तथा विकास के लिए विभिन्न की योजनाओं, परियोजनाओं और कार्य-प्रणालियों का निर्माण करता है तथा अपने सदस्यों के सहकार से उनका कार्यान्वयन करता है।


2. कार्यक्षेत्र-

पालि भाषा के वैश्विक-स्वरूप को देखते हुए पालि संवर्धन प्रतिष्ठान द्वारा सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ पालि-भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विदेशों में भी कार्य किया जायेगा।


3. उद्देश्य-
3.1 पालि-भाषा को सम्भाषण-भाषा (Spoken language) का स्वरूप प्रदान करना, ताकि इस भाषा को लोकव्यापी बनाया जा सके तथा जनता द्वारा इसमें निहित ज्ञान-राशि को उसके मूल रूप में समझने हेतु कौशल विकसित किया जा सके।

3.2 पालि तथा बुद्ध-धम्म में उपलब्ध साहित्य के माध्यम से समाज में शील-सदाचार, बन्धुत्व, मैत्री और समता के तत्त्वों को प्रचारित करना तथा उन्हें धारण करने हेतु सम्प्रेरित करने हुए समाज को प्रबुद्धता की ओर अग्रेसर करना।

3.3 पालि-विद्या की सभी विधाओं के अध्ययन, अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार को विवर्धित तथा विकसित करना; उनको स्वतन्त्र-शाखाओं (Independent branches) के रूप में स्थापित करना। यथा-पालि-वांमय में औषधि-विज्ञान, पालि-मनोविज्ञान, पालि व्याकरण-शास्त्र, पालि अलंकार एवं छन्दशास्त्र इत्यादि।

3.4 पालि-विद्या के विकास तथा व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए देश के विभिन्न नगरों में शान्तिमय तथा स्वच्छ वातावरण में ‘पालि-सम्भासन-साला’ (Center of Spoken Pali) स्थापित करना तथा उनमें आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा अनवरत रूप से महीने में दो बार दस या पन्द्रह दिवसीय पालि-सम्भाषण-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं के आयोजन की व्यवस्था करना।

3.5 आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा पालि के वैश्विक प्रचार-प्रसार हेतु मिशनरी के तौर पर प्रशिक्षक तैयार करने के लिए पालि-शिक्षक-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं के आयोजन की समुचित व्यवस्था करना तथा इन प्रशिक्षकों के लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पालि में रोजगार का विकास करना।

3.6 देश के विभिन्न स्थानों पर समान उद्देश्य पर कार्य करने वाली संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बनाते हुए पालि एवं धम्म के प्रचार-प्रसार तथा समुन्नयन के लिए कार्य करना तथा शैक्षणिक रूप से किसी संस्था से असम्बद्ध समाज को पालि भाषा का शिक्षण-प्रशिक्षण उपलब्ध कराना।

3.7 पालि के अध्ययन को सरल, आकर्षक और व्यापक बनाने के लिए उत्तम स्वाध्याय सामग्री, पत्राचार-पाठ्यक्रम तथा दूरस्थ शिक्षा सामग्री का निर्माण करना तथा नागरिकों को पालि पढ़ने के लिए सम्प्रेरित करना; पालि तथा धम्म की शिक्षा को व्यापक स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से विहारों को शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित करना, जहाँ पालि, धम्म, कम्प्यूटर, विज्ञान, कला, शिल्प तथा अन्य आवश्यक कौशलों के संवर्धन की शिक्षा प्रदान की जायें।

3.8 सर्वजन-उपलब्धता, अध्ययन एवं अनुसन्धान की व्यापकता की दृष्टि से पालि-भाषा के अप्रकाशित, दुर्लभ, आधुनिक साहित्य तथा शिक्षण-सामग्री का योग्य सम्पादन तथा प्रकाशन करना। आधुनिक तकनीकी संसाधनों के माध्यम से जनोपयोगी एप्स तथा साफ्टवेयर्स का निर्माण तथा सर्वजन-समुपलब्धता कराना।

3.9 पालि-भाषा के विविध आयामों पर शोध-सम्मेलनों, संगोष्ठियों, व्याख्यानमालाओं एवं परिचर्चाओं का आयोजन करना; छात्रा-छात्राओं के लिए पालि-आधारित विभिन्न प्रकार की शैक्षणिक स्पर्धाएं आयोजित करना तथा उन्हें सम्मानित करना; पालि के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान प्रदान करने वाले विद्वानों को सम्मानित करना।

3.10 इसके अतिरिक्त उन सभी उत्तरदायित्वों एवं कार्यों का सम्पादन करना, जो पालि-भाषा तथा धम्म की व्यापकता के लिए आवश्यक हो तथा समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए आवश्यक हो।