Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation


धम्म-पालि-अध्ययनशाला
(Dhamma Pali Schools)
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1.         परिचय (Introduction) -

            ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (Dhamma Pali Schools) ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ द्वारा पालि-भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए देश के गाँव-गाँव और नगर-नगर में संचालित प्रचार-संस्थाएँ हैं। प्रतिष्ठान इन धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं के माध्यम से ‘सामाजिक-पालि-अवधारणा’ (Concept of Social-Pali) के तहत घर-घर में पालि-भाषा के ज्ञान-आलोक को पहुँचाने का उपक्रम संचालित करता है। जिन लोगों ने विद्यालयों/विश्वविद्यालयों अथवा अन्य तरीकों से पालि की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की हैं, ऐसे लोगों को इन धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं के माध्यम से पालि का अनौपचारिक शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस प्रकार इन अध्ययनशालाओं में ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ समाज के सभी वर्गों - कृषकों, गृहिणियों, बच्चों, डाॅक्टर्स, इंजीनियर्स, शिक्षक तथा अन्य सभी - को पालि का शिक्षण प्रदान करते हैं।

          अध्येताओं की सुविधा तथा उपलब्धता के आधार पर किसी बुद्ध-विहार, भवन अथवा किसी उपासक-उपासिका के घर में यह ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (Dhamma Pali School) संचालित की जा सकती है।

        अध्ययनशाला में 6-6 माह के पाठ्यक्रमों के माध्यम से अध्येताओं को पालि-भाषा के व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा साथ-ही-साथ पालि-साहित्य के विशिष्ट बिन्दुओं का ज्ञान भी प्रदान किया जाता है। 

2.         दृष्टि (Vision) -

            वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पालि-सम्भाषण Spoken Pali) की परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए इसकी व्यवहारिकता के प्रति समाज में जागरुकता बढ़ाना; ताकि इसके आधार पर शील-सदाचार के आचरण-पक्ष (पटिपत्ति) को पुष्ट किया जा सके तथा परियत्ति तथा पालि-विद्या की गरिमा की संस्थापना हो सके; जिससे विश्व-समाज में सुख-शान्ति और मैत्राी-भाव का संवर्धन हो।

3.         ध्येय (Mission) -

  • पालि-भाषा को सम्भाषण भाषा (स्पदहनं तिंदबं) के रूप में विकसित करना;
  • पालि-भाषा के माध्यम से समाज में प्राचीन संस्कृति और मूल्यों की स्थापना करना;
  • बचपन से ही पालि-भाषा के शिक्षण की सुगमता से उपलब्धता;
  • ‘सामाजिक पालि अवधारणा’ के अनुसार औपचारिक रूप से पालि-अध्ययन में अक्षम लोगों तक पालि-भाषा तथा साहित्य का ज्ञान-आलोक पहुँचाना;
  • बुद्ध-विहारों को शिक्षण-केन्द्रों के रूप में विकसित करना;
  • पालि-भाषा को समाज में शिक्षा के प्रमुख स्रोत के रूप में विकसित करके इसके माध्यम से नैतिक शिक्षा का समाज तक प्रचार करना;
  • समाज में पालि-भाषा, साहित्य और परम्परा को स्थापित करके रोजगार के अवसर विकसित करना;
  • पालि-भाषा के शिक्षण के माध्यम से समाज में बन्धुत्व, सौहार्द, उत्साह और पारस्परिक-प्रेम संवर्धित करना;
  • पालि-भाषा से सम्बन्धित उत्सवों के विषय में अनुसन्धान करके इन्हें मनाये जाने हेतु समाज में प्रचार-प्रसार करना;
  • पालि-भाषा की स्पर्धाओं के माध्यम से समाज को प्रबुद्धता से सम्पन्न करना;
  • समय-समय पर समाज-कल्याण के कार्य करना - यथा-वृक्षारोपण, रक्त-दान शिविर, आपदाओं के समय सहायता प्रदान, विकास कार्य करना इत्यादि।


4.     कार्यक्षेत्र (Area of work) -


        पालि भाषा के वैश्विक-स्वरूप को देखते हुए ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ द्वारा सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ पालि-भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विदेशों में भी कार्य किया जायेगा।

5.     उद्देश्य (Objectives) -

5.1  पालि-भाषा को लोक-भाषा का स्वरूप प्रदान करके इसे लोकव्यापी बनाना, ताकि जनता द्वारा इसमें निहित ज्ञान-राशि को उसके मूल रूप में समझने हेतु कौशल विकसित किया जा सके।

5.2  पालि तथा बुद्ध-धम्म में उपलब्ध साहित्य के माध्यम से समाज में शील-सदाचार, बन्धुत्व, मैत्राी और समता के तत्त्वों को प्रचारित करना तथा उन्हें धारण करने हेतु सम्प्रेरित करने हुए समाज को प्रबुद्धता की ओर अग्रेसर करना।
5.3  देश के समस्त नगरों और गाँवों में पालि-भाषा के शिक्षण-केन्द्रों के रूप में संचालित ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ माध्यम से पालि-भाषा के ज्ञान को सर्वसुलभ बनाना।
5.4  ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ माध्यम से पालि-भाषा के माध्यम से समाज में एकता स्थापित करना और आपस में संवाद कायम करना।
5.5  विपस्सना-केन्द्रों की तर्ज पर, पालि-विद्या के विकास तथा व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए देश के विभिन्न नगरों में शान्तिमय तथा स्वच्छ वातावरण में स्थायि-रूप से ‘पालि-सम्भासन-साला’ (Centers of Spoken Pali) स्थापित करना तथा उनमें आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा अनवरत रूप से महीने में दो बार दस या पन्द्रह दिवसीय पालि-सम्भाषण-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं के आयोजन की व्यवस्था की जा सके।
            5.6  आधुनिक तथा तकनीकी प्रणालियों एव प्रविधियों के द्वारा पालि के वैश्विक प्रचार-प्रसार हेतु मिशनरी के तौर पर प्रशिक्षक तैयार करने के लिए ‘पालि-शिक्षक-प्रशिक्षण-अध्ययनशालाओं’ (Schools of Pali teachers and Trainers) के आयोजन की समुचित व्यवस्था करना तथा इन प्रशिक्षकों के लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पालि में रोजगार का विकास करना। 
            5.7  देश के विभिन्न स्थानों पर समान उद्देश्य पर कार्य करने वाली संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बनाते हुए पालि एवं धम्म के प्रचार-प्रसार तथा समुन्नयन के लिए कार्य करना तथा शैक्षणिक रूप से किसी संस्था से असम्बद्ध समाज को पालि भाषा का शिक्षण-प्रशिक्षण उपलब्ध कराना।
            3.8  इसके अतिरिक्त उन सभी उत्तरदायित्वों एवं कार्यों का सम्पादन करना, जो पालि-भाषा तथा धम्म की व्यापकता के लिए आवश्यक हो तथा समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए आवश्यक हो।

6.         लक्ष्य (Aims) -

            धम्म-पालि-अध्ययनशाला का प्रमुख लक्ष्य पालि-शिक्षा के माध्यम से भगवान् बुद्ध की कल्याणकारी शिक्षाओं को घर-घर पहुँचाना है। भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं को सभी धम्मानुरागी जन पालि-माध्यम से समझ सके तथा पालि-भाषा के माध्यम से वे बात-चीत (सम्भाषण) कर सके यह इन अध्ययनशालाओं का लक्ष्य होगा। बच्चों में नैतिक-शिक्षा तथा उत्तम संस्कारों का बीजारोपण करना भी इन अध्ययनशालाओं के लक्ष्यों में प्रमुख हैं।

 7.         धम्म-पालि-अध्ययनशाला की केन्द्रीय कार्य-पद्धति एवं नियमावली (Central Procedure and Manual of Dhamma-Pali Schools) -

            ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ सम्पूर्ण भारत में ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ (Dhamma Pali Schools) का संचालन करता है। धम्म-पालि-अध्ययनशाला का संचालन देश के सभी गाँवों-कस्बों या नगरों-उपनगरों में किया जा सकता है। ‘घर-घर में पालि अभियान’ के तहत देश में हर जगह ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का संचालन किया जा सकता है, बशर्ते उस स्थान में पालि पढ़ने के इच्छुक अध्येताओं की संख्या कम-से-कम 25 होनी चाहिए।

            इन ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं’ को जगह-जगह उद्घाटित करने के लिए पालि तथा धम्म के प्रति समर्पित तथा योग्य उपासक-उपासिकाओं से इस हेतु आवेदन-पत्र आमन्त्रित किये जायेंगे। आवेदन-पत्रों के आधार पर योग्य उपासक/उपासिका का ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ (Dhamma-Pali-Teacher) के रूप में चुना जाता है। ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ ही धम्म-पालि-अध्ययनशाला का मुख्य-आधार होता है।

            धम्म-पालि-शिक्षक अध्ययनशाला के समुचित संचालन और प्रबन्धन के लिए उस स्थान में एक ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला-समिति’ (Dhamma-Pali-School Committee) का गठन करता है। इस समिति में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सह-सचिव, कोषाध्यक्ष, प्रचार-प्रमुख तथा संगठक होने चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक पदेन इस समिति का संयोजक होता है। यह समिति बाद में ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान की ईकाई’ के रूप में भी कार्य करती है। समिति ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ के संचालन और प्रबन्धन में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में सहायता करती है। साथ ही समिति पालि के व्यापक प्रचार के लिए प्रेस-वार्ता, प्रेस-नोट, बैनर, फ्लेक्स, पांपलेट्स इत्यादि प्रचार-तन्त्रों के माध्यम से सूचना प्रसारित करती है।  

            गठन के पश्चात् उक्त समिति के माध्यम से ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का किसी सुविधाजनक और योग्य स्थान में संचालन किया जाता है। ‘धम्म-पालि-अध्ययनशालाएँ’ किसी बुद्ध-विहार, भवन अथवा किसी उपासक-उपासिका के घर में सुविधानुसार संचालित की जा सकती है।

            इन धम्म-पालि-अध्ययनशाला में पालि के क्रमिक ज्ञान को आधार बनाकर 6-6 माह के पाठ्यक्रम तैयार किये गये हैं। ये पाठ्यक्रम ‘पाठचरिया’ कहे जाते हैं। 

            ये पाठचरियाएँ इस प्रकार हैं -

            पाठचरियायें (Courses) -

                        1. पालि-वोहार-पाठचरिया

                        2. पालि-ञाण-पाठचरिया

                        3. पालि-सुत्त-पाठचरिया

                        4. पालि-विदु-पाठचरिया

            प्रत्येक पाठचरिया की अवधि 6-6 माह की हैं। ‘धम्म-पालि-अध्ययनशाला’ का प्रमुख उद्देश्य पालि-भाषा को लोकभाषा बनाना तथा इसका व्यवहारिक ज्ञान समाज तक पहुँचाना है। इसी बात को दृष्टि में प्रस्तुत पाठ्यक्रम की संरचना की गई है। अतः अध्येता को क्रमिक आधार पर इन अध्ययनशालाओं में व्यवस्थित और सुसंगठित पाठ्यक्रम के आधार पर अध्ययन करना होता है। प्रथम पाठचरिया को सफलतापूर्वक पढ़कर अध्येता द्वितीय पाठचरिया का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। फिर क्रमशः तृतीय तथा चतुर्थ पाठचरिया का अध्ययन किया जा सकता है।

            इन पाठ्यक्रमों में प्रथम छ-माही पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम पालि का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया। द्वितीय छ-माही पाठ्यक्रम में पालि भाषा के व्याकरण तथा साहित्य के विषय में बताया जाता है। तृतीय छ-माही में पालि परित्त के साथ प्रमुख सुत्तों एवं गाथाओं का अध्यापन किया जाता है। चतुर्थ छ-माही में पालि-व्याकरण के अन्तर्गत सन्धि, समास, छन्द एवं अलंकारादि का अध्यापन किया जाता है। इन पाठ्यक्रमों में अध्येताओं को पालि-भाषा के व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा साथ-ही-साथ स्थान-स्थान पर नैतिक शिक्षा के आधार पर पालि-साहित्य के विशिष्ट बिन्दुओं के विषय में भी जानकारी प्रदान की जाती है।

            इन पाठचरियाओं में पालि-भाषा तथा साहित्य के साथ-साथ परियत्ति-विद्या (बुद्ध-वाणी या तिपिटक-साहित्य) का ज्ञान भी प्रदान किया जाता हैं तथा अध्येताओं को पटिपत्ति (विपस्सना विद्या के साथ शीलों का व्यवहारिक अभ्यास) और पटिवेध (प्रज्ञा के द्वारा सत्य के साक्षात्कार) के अभ्यास के लिए भी सम्प्रेरित किया जाता है।

            संक्षेपतः ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ धम्म-पालि-अध्ययनशाला की अवधारणा के आधार पर ‘समाज द्वारा समाज के लिए पालि’ पर आधारित है। इसमें बिना किसी प्रकार की सरकारी या अन्य संस्थाओं की वित्तीय सहायता के सम्पूर्ण देश में पालि-भाषा को पहुँचाने के कार्य में संलग्न है।   

8.         धम्म-पालि शिक्षक (Dhamma-Pali-Teacher) -

            ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ (Dhamma-Pali-Teacher) धम्म-पालि-अध्ययनशाला का मुख्य-आधार है। धम्म-पालि- अध्ययनशाला के संचालन तथा प्रबन्धन का मुख्यतः दारोमदार धम्म-पालि-शिक्षक के कन्धों पर ही होता है। धम्म-पालि-शिक्षक के रूप में नियुक्त किये जाने के पश्चात् वह ‘धम्म-पालि- अध्ययनशाला-समिति’ (क्ींउउं.च्ंसप.ैबीववस ब्वउउपजजमम) का गठन करता है तथा धम्म-पालि-अध्ययनशाला के संचालन के लिए किसी बुद्ध-विहार, विद्यालय, उपासक/उपासिका के निवास-स्थान अथवा अन्य किसी समुचित स्थान की तलाश करके सप्ताह में एक दिन (3-4 घण्टे) अथवा प्रतिदिन सुबह या शाम को (1-2 घण्टे) पालि-कक्षाओं का संचालन करता है।

            पालि-कक्षाओं के संचालन के लिए उसे पालि-भाषा तथा साहित्य में ठीक प्रकार से प्रशिक्षित तथा ज्ञान-सम्पन्न होना होता है। इस हेतु ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ के द्वारा धम्म-पालि-शिक्षकों को पालि भाषा सीखाने हेतु समय-समय पर ‘पालि सम्भाषण प्रशिक्षण अध्ययनशाला’ और ‘पालि-उन्मुखीकरण कार्यक्रम’ किये जाते हैं।

            धम्म-पालि-शिक्षक में निम्नोक्त अर्हताएँ होनी आवश्यक हैµ

            8.1 शील-पालन -

            एक धम्म-पालि-शिक्षक की शीलाचरण और सदाचार के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक को अपने व्यवहारिक जीवन में पाँच शीलों का क्षण-क्षण में स्मृति रखते हुए पालन करना होता है। 

            पाँच शील इस प्रकार हैं -

            (1) पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि - मैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

            (2) अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि - मैं चोरी करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

            (3) कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि - मैं काम-व्यभिचार न करने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

            (4) मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि - मैं झूठ बोलने, कठोर-वचन बोलने, बकवास करने तथा चुगली करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

            (5) सुरा-मेरय-मज्ज-प्पमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि - मैं कच्ची या पक्की शराब, मादक द्रव्यों के सेवन तथा प्रमादकारी वस्तुओं के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

            एक धम्म-पालि-शिक्षक को न केवल स्वयं के कल्याण के लिए, अपितु सर्वजन-कल्याण के लिए शीलों का पालन करना चाहिए। धम्म-पालि-शिक्षक का आचरण समाज में एक आदर्श की तरह होता है। शील-पालन से परिशुद्ध धम्म-पालि-शिक्षक समाज के लिए एक मिसाल बन जाता है। लोग उसे देखकर स्वयं भी शीलवान् और बुरी आदतों से दूर होने लगते हैं। 

            शील-पालन सीखने और अभ्यास करने के लिए धम्म-पालि-शिक्षक को 10 दिवसीय विपस्सना साधना शिविर करना आवश्यक है।

            विपस्सना साधना शिविर करने से उसे धम्म तथा पालि का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।


            8.2 प्रचार के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति जज्बा -

            सद्धम्म तथा पालि भाषा के व्यापक प्रचार के प्रति धम्म-पालि-शिक्षक में दृढ़ इच्छा-शक्ति होनी आवश्यक है। दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर संकल्प के बल पर ही किसी कार्य को साधा जा सकता है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि ‘भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान’ एक अलाभकारी गैर-सरकारी संगठन है। इसके सभी कार्यकर्ता बिना किसी वित्तीय लाभ के धम्म और पालि के प्रचार-प्रसार, संवर्धन और विकास के लिए कार्य करते हैं। 

            धम्म-पालि-अध्ययनशालाएँ इसी प्रतिष्ठान का अंग होने के कारण इसके लिए धम्म-पालि-शिक्षक को भी किसी प्रकार का वेतन नहीं दिया जाता है। सभी धम्म-पालि-शिक्षक बिना किसी आर्थिक लाभ के स्वप्रेरित होकर अपनी इच्छा-शक्ति और संकल्प के बल पर धम्म और पालि के प्रचार-प्रसार के लिए समय-दान करते हैं।

            यह सत्य है कि सद्धम्म और पालि के प्रचार के लिए धम्म-पालि-शिक्षक को कोई वित्तीय लाभ प्राप्त नहीं होता है; किन्तु यह भी सत्य है कि धम्म और पालि के प्रचार के लिए धम्म-पालि-शिक्षक द्वारा किये गये कार्यों से उसके व्यक्तित्व विकास पर बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा वह धम्म तथा पालि सीखने का सौभाग्य प्राप्त करता है और उसे इसे समाज में बाँटकर अपनी पारमिताओं को बढ़ाने का अद्वितीय लाभ प्राप्त होता है।

            8.3 शैक्षणिक-अर्हताएँ -

            एक धम्म-पालि-शिक्षक बनने के लिए किसी भी विषय में स्नातक-परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक है।


            8.4 आयु-सीमा -

            एक धम्म-पालि-शिक्षक बनने के लिए आयु-सीमा 20-45 वर्ष है।



9.         धम्म-पालि-शिक्षक के प्रमुख कार्य (Main work of Dhamma-Pali-teacher) -

            ‘धम्म-पालि-शिक्षक’ की समाज निर्माण में महती भूमिका है। धम्म-पालि-शिक्षक के द्वारा किये गये कार्य वस्तुतः ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के ही कार्य हैं। अपने सभी व्यक्तिगत कार्यों का निर्वाह करते हुए वह धम्म-पालि-शिक्षक समाज-निर्माण में अपनी भूमिका का भी निर्वाह करता है। आने वाले 10-15 वर्षों में पालि के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में धम्म-पालि-शिक्षक अपनी उत्तम सेवा प्रदान करता है। आज समाज में बहुत बड़ा परिष्कार, स्वाभिमान, आत्म-विश्वास और खुलापन आया है। इसी को आगे बढ़ाते हुए अब समाज को ‘प्रबुद्ध समाज’ की ओर एक कदम आगे लेकर जाना आवश्यक है। इस हेतु पालि-भाषा एक अति-उत्तम और विशिष्ट रचनात्मक साधन है। 

            पालि-भाषा पूर्णतः वैज्ञानिकता, नैतिकता और लोक-कल्याण की भाषा है। यह भाषा किसी समय इस देश के बहुत बड़े भू-भाग में जन-भाषा थी तथा इसी भाषा की व्यवहारिकता, संवादात्मकता और लोकप्रियता के कारण महाकारुणिक तथागत भगवान् गौतम बुद्ध ने अपने अनुपम धम्म को इसी के माध्यम से जन-जन में वितरित किया। इसके द्वारा धम्म-पालि-शिक्षक अनेक रचनात्मक एवं परिष्कारात्मक कार्य कर सकता है।

            एक धम्म-पालि-शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के पश्चात् उसे अवैतनिक रूप से पालि के संवर्धन के लिए निम्नोक्त कार्य करने होते हैं -
   

प्रमुख कार्य -

 (i) धम्म-पालि-अध्ययनशाला-समिति का गठन,

 (ii) धम्म-पालि-अध्ययनशाला में अध्ययन करने वाले सम्भावित अध्येताओं की सूची का निर्माण,

(iii) धम्म-पालि-अध्ययनशाला का नियमित संचालन और प्रबन्धन,

(iv) अध्येताओं के मन में पालि-भाषा के प्रति श्रद्धा जागृत करना,

(v) अध्येताओं की शंकाओं और जिज्ञासा का समाधान,
  

सहायक कार्य -

(vi) समाज में निरन्तर मेल-मिलाप और एकता का प्रयास,

(vii) पालि-आधारित उत्सवों का आयोजन,

(viii) पालि-स्पर्धाओं का आयोजन, संचालन और प्रबन्धन,

(ix) पालि-व्याख्यानमाला का आयोजन,

(x) धम्मपद का कण्ठस्थीकरण कराना,

(xi) ई-पालि के प्रति समाज में जागरुकता लाना,

(xii) पालि-संस्थाओं के निर्माण के प्रति प्रयास,

(xiii) पत्राचार-पाठ्यक्रमों के संचालन में सहायता,

(xiv) भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान से प्राप्त निर्देशों का अनुपालन,



10.       धम्म-पालि शिक्षक प्रशिक्षण (Dhamma Pali Teachers' Training) -

            धम्म-पालि-शिक्षक के लिए समय-समय पर पालि भाषा तथा भाषा-कौशल के प्रशिक्षण आयोजित किये जायेंगे। प्रथम प्रशिक्षण के अवसर पर धम्म-पालि-शिक्षक को प्राथमिक पालि-ज्ञान तथा व्यवहारिक व्याकरण का शिक्षण प्रदान किया जायेगा तथा समय-समय पर क्रमशः परिवर्द्धन करते हुए पालि-व्याकरण के अपेक्षाकृत प्रौढ़ व्याकरण के अंशों को भी अध्यापित किया जायेगा।

            समाज में पालि का प्रचार-प्रसार करने के लिए अपेक्षित व्यवहारिक-कौशल तथा व्यक्तित्व-विकास का प्रशिक्षण भी दिया जायेगा।



11.       धम्म-पालि अध्ययनशाला में प्रयुक्त शिक्षण सामग्री (Teaching materials used in Dhamma-Pali School) -


            धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं में निम्नोक्त शिक्षण-सामग्री (पाठचरियाओं) के आधार पर प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा -

            पाठचरियायें (Courses) -

                        1. पालि-वोहार-पाठचरिया

                        2. पालि-ञाण-पाठचरिया

                        3. पालि-सुत्त-पाठचरिया

                        4. पालि-विदु-पाठचरिया

            प्रत्येक पाठचरिया की अवधि 6-6 माह की हैं।


            इन पाठचरियाएँ पुस्तक के रूप में होंगी तथा धम्म-पालि-शिक्षक तथा अध्ययनशाला के अध्ययनरत सभी अध्येताओं को उपलब्ध करायी जायेंगी।


12.       धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं का संचालन एवं कार्यविधि (Operation and procedure of Dhamma-Pali Schools) -

            धम्म-पालि-अध्ययनशालाएँ एक केन्द्रीय संस्था के मार्गदर्शन तथा संरक्षण में संचालित होंगी। ये अध्ययनशालाएँ स्थानीय स्तर पर चलायी जायेंगी तथा स्थानीय स्तर पर भी एक समिति की सहायता से इनका संचालन होगा। अध्ययनशालाओं को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था भी समिति के द्वारा ही करना होगा।



13.       वेबसाईट एवं अन्य प्रचार-साधनों में धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं के क्रियाकलापों का प्रचार एवं अपलोडिंग (Publicity and uploading activities of Dhamma-Pali-schools in website and other Media) -


            धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं में अध्यापित विषयों तथा प्रचार-सम्बन्धी साधन ‘माय पालि’ वेबसाईट पर समय समय पर अपलोड की जायेंगी तथा आवश्यक मार्गदर्शन भी इसके माध्यम से प्रदान किये जायेंगे। इस वेबसाईट की लिंक इस प्रकार है-



            इसी प्रकार पालि-दर्शन यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से भी आवश्यक निर्देश तथा अध्ययन-सम्बन्धी समस्याओं का लाईव प्रसारण के जरिये निराकरण किया जायेगा। इस यू-ट्यूब चैनल की लिंक इस प्रकार है.



14.       चक्रीयता (Cyclicity) -

            धम्म-पालि-अध्ययनशालाओं का आरम्भ जनवरी से जून तथा जुलाई से दिसम्बर के लिए किया जा सकेगा। जो अध्येता पालि-वोहार-पाठचरिया को उत्तीर्ण कर लेंगे, वे पालि-×ााण-पाठचरिया में प्रवेश ले लेंगे, इसी प्रकार क्रमशः अध्येता को प्रोन्नत होते हुए पालि-सुत्त-पाठचरिया तथा पालि-विदु-पाठचरिया का अध्ययन करना होगा। 

            चारों पाठचरियाओं का नाम इस प्रकार है-

                        1. पालि-वोहार-पाठचरिया

                        2. पालि-×ााण-पाठचरिया

                        3. पालि-सुत्त-पाठचरिया

                        4. पालि-विदु-पाठचरिया

15.       आवेदन-पत्र (Application)-

            भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान की वेबसाईट पर धम्म-पालि-शिक्षक प्रशिक्षण-अध्ययनशाला हेतु विज्ञापन किया जायेगा तथा आवेदन-पत्रा भी अपलोड किया जायेगा। अतः समय-समय पर वेबसाईट का अवलोकन करते रहना चाहिए।



16.       पालि-अध्येताओं का सर्वेक्षण (Survey of Students of Pali)-

            धम्म-पालि-शिक्षक को धम्म-पालि-अध्ययनशाला का संचालन करने के लिए भवनादि की व्यवस्था करनी होगी। इसी प्रकार जिज्ञासु अध्येताओं का सर्वेक्षण भी करना होगा तथा उनका नामांकन करना होगा। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर सोशल-मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार भी करना होगा।

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