Monday, 7 September 2020
रजिस्ट्रेशन-फॉर्म "पालि-संस्कृति-पर्व" (25 सितम्बर, 2020)
रजिस्ट्रेशन-फॉर्म ‘पालि-प्रतियोगिता’ (22-24 सितम्बर, 2020 )
पालि-संस्कृति-पर्व
पालि-विभाग-प्रमुखों का सम्मलेन
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23 सितम्बर, 2020
"पालि भाषा का महत्त्व और वर्त्तमान-कालिक प्रासंगिकता"
भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान तथा मित्र संगठनों द्वारा दिनांक 17 सितम्बर, 2020 को देवमित्त अनागारिक धम्मपाल जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में ‘विस्स-पालि-गारव-दिवसो’ का आयोजन किया जा रहा है तथा इस दिन को केन्द्रित रखते हुए 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक ‘पालि-पखवाड़ा-2020’ का विशाल स्तर पर आयोजन किया जा रहा है।
इस पालि पखवाड़े के तहत अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। 23 सितम्बर, 2020 को "पालि भाषा का महत्त्व और वर्त्तमान-कालिक प्रासंगिकता" इस विषय पर पालि-विभाग-प्रमुखों के सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा है।
पालि-प्रतियोगिता
त्रिदिवसीय वेबीनार
उपशीर्षक
* World Pali Pride Day *
एहि पस्सिको
... "विस्स-पालि-गारव-दिवस" ...
17 सितम्बर, 2020
के उपलक्ष्य में आयोजित द्विदिवसीया
ऑनलाईन पालि संगोष्ठी
-: विषय :-
देवमित्त अनागारिक धम्मपाल का
पालि और बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान
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17-18 सितंबर, 2020
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श्रीलंका के कोलंबों में डॉन केरोलिस हेवावितारण (पिता) और मल्लिका धर्मागुणवर्धने (माता) के घर में 17 सितंबर 1864 को डॉन डेविड का जन्म हुआ, जो बाद में अपने कार्यों से देवमित्त अनागारिक धम्मपाल नाम से लोक-विख्यात हुआ। डेविड के पिता एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, तो स्वाभाविक था उनकी शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी मिशनरी स्कूलों में हुई। यूरोपीय रहन-सहन और शिक्षा उन्हें ज्यादा दिन तक बांध नहीं पाई। 1883 में श्रीलंका में अंग्रेज कैथोलिकों की भीड़ ने एक बौद्ध जुलूस पर हमला किया, तो धर्मपाल ने मिशनरी स्कूल छोड़ दिया और बौद्ध धर्म के प्रति उनका झुकाव बढ गया। उसी वर्ष थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक कर्नल हेनरी स्टील ओल्कोट और मैडम ब्लावत्स्की श्रीलंका पहुंचे और हमले में घायल हुए बौद्धों की ओर से मुकदमा दायर किया। श्रीलंका में बौद्ध पुनरुत्थान के पुनीत कार्य को देखकर धर्मपाल भी थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य बन गए।
उन्होंने तत्कालीन भदंत हिक्कडुवे श्रीसुमंगल महाथेर से पालि भाषा की शिक्षा ली और बौद्ध धर्म ग्रहण किया। पालि भाषा को गहराई से जानकर उन्होंने बौद्ध विद्याओं और धम्म की बारीकियों को समझा तथा अपना एक नया नाम दिया अनागारिक और यहीं से आरम्भ होती है - अनागारिक धर्मपाल जी की धम्मयात्रा जो काल-कवलित और पौराणिक गप्प कथाओं में कल्पना बना दिए गए तथागत बुद्ध की तथता को पुनः ऐतिहासिक स्वरूप देने की और भारत में पुनः बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।
जनवरी 1891 को अनागारिक धम्मपाल जी भारत आए और बोधगया के महाबोधि महाविहार की दुर्दशा को देखकर उनकी आंखों से अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी। इस दुर्दशा को देखकर उनके चित्त में जो बोधि उत्पन्न हुई कि मैं अपना जीवन लगा दूंगा किन्तु महाबोधि महाविहार को उसकी भव्यता लौटा के रहूँगा। अनागारिक धर्मपाल जी ने जापान, बर्मा, श्रीलंका के बौद्धों को कई पत्र लिखे महाबोधि महाविहार के संरक्षण के लिए। 31 मई 1891 को कोलम्बो में उन्होंने महाबोधि महाविहार के साथ-साथ भारत के अन्य बौद्ध स्थलों के पुनरुद्धार और पुजारियों से मुक्ति के लिए महाबोधि सोसायटी का निर्माण किया जिसके अध्यक्ष 13वें परम पावन दलाई लामा जी बनाए गए।
महाबोधि महाविहार के बाहर अनागारिक धम्मपाल जी ने महाबोधि सोसायटी की शाखा स्थापित की जिसके माध्यम से न केवल बोधगया अपितु नालन्दा, राजगृह, सारनाथ आदि के महाविहारों और स्तूपों की मुक्ति का संघर्ष किया गया। महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागारिक धर्मपाल जी ने एक सिविल याचिका दायर की जिसमें मांग की गई थी की महाबोधि महाविहार और दूसरे अन्य तीन प्रसिध्द बौद्ध-स्थलों कुशीनगर, सारनाथ और नालन्दा को बौद्धों को हस्तांतरित किया जाये। अनागारिक धर्मपाल जी की तरफ से यह केस आशुतोष मुखर्जी ने लड़ा था। धीरे-धीरे महाबोधि महाविहार के प्रबंधन में बौद्धों को रखा जाने लगा, किन्तु आज भी उस समिति में आधे हिन्दू और आधे बौद्ध होते हैं तथा अध्यक्ष गया का जिला कलेक्टर होता है जो अमूमन बौद्धेतर ही होता है।
1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित की गई विश्व धर्म संसद में अनागारिक धर्मपाल जी ने बौद्धों का प्रतिनिधित्व किया। इन्हीं के प्रयासों से हिन्दू धर्म पर विचार रखने के लिए स्वामी विवेकानन्द जी को भी समय दिया गया। अपने जीवन के अंतिम समय तक अनागारिक धर्मपाल जी ने श्रीलंका सहित दुनिया के अनेक देशों में पालि एवं बौद्ध विद्या के संवर्धन हेतु स्कूलों, अस्पतालों और बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया।
13 जुलाई 1931 में अनागारिक धर्मपाल जी ने सामणेर (श्रामणेर) के रूप में प्रव्रज्या ली और 16 जनवरी 1933 को उपसंपदा हुई और वे भिक्खु बने तथा उनका नाम देवमित्त धम्मपाल हुआ। सन् 1933 में 29 अप्रैल को 69 वर्ष की आयु में सारनाथ में परिनिब्बुत हुए। उनकी अस्थियाँ सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में ही पत्थर के एक छोटे स्तूप में स्थापित की गई हैं।
पालि भाषा और बौद्ध विद्याओं सहित धम्म के पुनर्जागरण में उनके महान् योगदान को देखते हुए हम भारतवासी उनके जन्म दिनांक 17 सितम्बर को “विस्स पालि गारव दिवस” के रूप में मनाते हैं। इस साल कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हम गूगल मीट के माध्यम से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी 17-18 सितम्बर, 2020 को आयोजित कर रहे हैं जिसका विषय “अनागारिक धम्मपाल का पालि और बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान” निश्चित किया है। आप भी नीचे दिए गए विभिन्न उपविषयों और मुख्य विषय को ध्यान में रखकर अपने पूर्ण शोधपत्र, सारसहित 10 सितम्बर तक prafullgadpal@gmail.com अथवा vikas.sing.gautam@gmail.com पर भेज सकते हैं।
आपके शोधलेखों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा।
उपविषय: -
1. जॉन डेविड से देवमित्त अनागारिक धम्मपाल तक की यात्रा
2. अनागारिक धम्मपाल जी का पालि के प्रति उमड़ता प्रेम
3. पालि भाषा के द्वारा श्रीलंका में बौद्ध पुनर्जागरण आंदोलन
4. अनागारिक धम्मपाल जी द्वारा पालि एवं बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान
5. अनागारिक धम्मपाल द्वारा भारत में बौद्ध पुनर्जागरण आंदोलन का आरम्भ
6. शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में बौद्ध पक्षकार अनागारिक धम्मपाल
7. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर और अनागारिक धम्मपाल
8. अनागारिक धम्मपाल के समकालीन पालि विद्वानों का उनके प्रति नजरिया
9. श्रीलंका और भारत के वैदेशिक संबंध और अनागारिक धम्मपाल
10. थेरवाद और महायान पर अनागारिक धम्मपाल जी के विचार
11. अनागारिक धम्मपाल जी की विदेश यात्राएं
12. अन्य कोई भी विषय जो अनागारिक धम्मपाल जी तथा आधुनिक पालि से संबंधित हो।
कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा तथा Google Meet की लिंक आपको यथाकाल अवगत करा दी जायेगी।
संयोजक एवं आपके पालिमित्र
-डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल (81264 85505)
-डॉ. विकास सिंह (97115 7933)
-आयु. सुगत शान्तेय (95610 83358)
पालि-पक्खुस्सवो (पालि-पक्षोत्सव)
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