Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

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Monday 7 September 2020

On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 रजिस्ट्रेशन-फॉर्म "पालि-संस्कृति-पर्व" (25 सितम्बर, 2020)

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25 सितम्बर, 2020 -10.00 बजे से 01.00 बजे तक तथा 3.00 बजे से 6.00 बजे तक-
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भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत श्रमण-संस्कृति का विशेष स्थान है तथा श्रमण-संस्कृति में भी बुद्ध-संस्कृति एक अत्यन्त पावन संस्कृति है। तथागत भगवान् बुद्ध का शील, समाधि और प्रज्ञा का यह मार्ग सबके हित-सुख की संस्कृति का निनाद करता हुआ सदियों से मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा की शीतल वर्षा करता आ रहा है। आज विपस्सना ध्यान-भावना तथा सामाजिक-प्रासंगिकता के कारण भगवान् बुद्ध की मानवीय एवं कल्याणकारी शिक्षाएं जन-जन में प्रसारित हो रही हैं। तथागत भगवान् बुद्ध की ये शिक्षाएं पालि-भाषा में उपलब्ध होती हैं तथा चारों परिषदों के लिए इसका समान महत्त्व प्रतीत होता है।
तथागत भगवान् गौतम बुद्ध के पावन श्रावक संघ अर्थात् भिक्खु-संघ तथा भिक्खुणी-संघ में पालि भाषा के अध्ययन तथा इसमें उपनिबद्ध सुत्तों के संगायन की सुदीर्घ परम्परा है। इसी प्रकार उपासक-संघ तथा उपासिका-संघ के लिए भी इस भाषा तथा सुत्तों का संगायन आवश्यक है। यद्यपि यह परम्परा भारत में सुदीर्घ-काल तक लुप्तप्राय हो चुकी थी तथा इस धीरे-धीरे पुनः प्रतिष्ठापित हो रही है। अतः इसे संस्थापित करने तथा उपासक-उपासिकाओं में प्रसारित करने हेतु भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक आयोजित किये जा रहे पालि-पखवाड़ा 2020 के अन्तर्गत ‘पालि-संस्कृति-पर्व’ का आयोजन किया जा रहा है।
दिनांक - 25 सितम्बर, 2020
समय - प्रातः 10.00 बजे से 01.00 बजे तथा अपराह्ण 03.00 बजे से 06.00 बजे।
पालि-संस्कृति-पर्व में निम्नोक्त प्रतियोगिताएं आयोजित की जायेंगी-
विधा - विषय/शीर्षक
1. पालि-रंगोळिका - महाबोधि-रुक्खो (महाबोधि-वृक्ष)
2. पालि पेंटिंग/चित्रकला - पठमं धम्मचक्कप्पवत्तनं (प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन)
3. पालि संगीत वादन - स्वयं वाद्यों को बजाकर धम्म सम्बन्धी संगीत-प्रदर्शन
4. धम्म-पालि गीत/कविता - मैत्री सम्पूर्ण धम्म है
5. धम्म-पालि निबन्ध-लेखन - भगवान् बुद्ध का जीवन परिचय
6. नृत्य - सुजाता का सिद्धार्थ गौतम को खीर-दान
7. धम्म-फोटोग्राफी - घर में बुद्ध-पूजा
8. धम्म-पालि शार्ट-मूवी - आओ पालि सीखें
9. धम्म-पालि सृजनात्मक लेखन - बुद्ध के अग्रश्रावक (किसी एक की कथा)
10. धम्म-पालि लघुकथा लेखन - बुद्ध संघ की थेरी (कोई एक)
उक्त विषय में अधिक जानकारी तथा लिंक नीचे दिये गये टेलीग्राम ग्रुप पर दी जायेगी। अतः आप टेलीग्राम एप डाउनलोड करके नीचे दी गई लिंक से जुड़ने का कष्ट करें-
सभी प्रतियोगिताएँ जूम, गूगल मीट, टेलीग्राम, व्हाट्स-अप, गूगल फार्म इत्यादि के माध्यम से आयोजित की जायेंगी।
समस्त प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया जायेगा तथा समस्त प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र प्रदान किया जायेगा।
नोट-
1. प्रति प्रतियोगिता के नियम और निर्देश पृथक से प्रदान किये जायेंगे।
2. सभी को एक लिंक के माध्यम से नीचे दिये फॉर्म से रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा।
3. प्रतियोगिताओं की लिंक बाद में उसी समय बताई जायेगी।
4. सभी को टेलीग्राम एप डाउनलोड करके ‘पालि-पखवाड़ा 2020 (प्रतियोगिता)’ ग्रुप की निम्नोक्त लिंक से जुड़ना आवश्यक है-
5. प्रतिभागिता-प्रमाण-पत्र के लिये ई-मेल (E-mail) प्रविष्ट करना आवश्यक है।
पालि-संस्कृति-पर्व" (25 सितम्बर, 2020) में भागग्रहण करने हेतु नीचे दी गई लिंक का प्रयोग करें-

- संयोजक तथा पालिमित्र
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डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल - 81264 85505
डाॅ. विकास सिंह - 97115 70933
सुगत शान्तेय - 86050 27358
डाॅ. रमेश रोहित - 88399 73215
प्रा. राजेन्द्र प्रसाद - 99298 42897
इंजी. भारत वनकर - 94040 79692
अरविन्द भण्डारे - 99676 92014
डाॅ. संघप्रकाश दुड्डे - 97669 97174
आशीष गड़पाल - 88398 71961
अमित मेधावी - 97643 46793
विशाखानन्द बंसोड़ - 88008 64831




On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 रजिस्ट्रेशन-फॉर्म ‘पालि-प्रतियोगिता’ (22-24 सितम्बर, 2020 )

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भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान तथा इसके सहकारी संगठनों द्वारा ‘पालि-पखवाड़ा’ उत्सव मनाया जा रहा है। पालि-पखवाड़ा वस्तुतः एक पालि-उत्सव है तथा इसके अन्तर्गत बच्चों में नैतिक-शिक्षा का प्रसार करने की दृष्टि से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाने सुनिश्चित किये गये हैं। उनमें 22-24 सितम्बर, 2020 की अवधि में बच्चों के लिए ‘पालि-प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत तीन वर्गों में विविध प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित की जायेगी। माध्यमिक स्तर, हाई स्कूल/हायर सेकेण्डरी स्कूल तथा स्नातक/स्नातकोत्तर के इन तीन स्तरों में पालि-गीत, पालि-कविता-पाठ, पालि-निबन्ध-लेखन, भाषण, श्रुत-लेखन, परिचय-लेखन-स्पर्धा, परिचय-कथन-स्पर्धा, संगायन, पालि-ज्ञान-प्रतियोगिता, धम्म-पालि-प्रश्नावली, चित्रकला और रंग भरो प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जायेगा।
कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जूम एप के माध्यम से यह पालि-पखवाड़ा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है। सभी प्रतियोगिताएँ जूम, गूगल मीट, टेलीग्राम, व्हाट्स-अप, गूगल फार्म इत्यादि के माध्यम से आयोजित की जायेंगी। समस्त प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया जायेगा तथा समस्त प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र प्रदान किया जायेगा।
नोट-
1. प्रति प्रतियोगिता के नियम और निर्देश पृथक से प्रदान किये जायेंगे।
2. सभी को लिंक के माध्यम से नीचे दिये फॉर्म से रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा।
3. प्रतियोगिताओं की लिंक बाद में उसी समय बताई जायेगी।
4. सभी को टेलीग्राम एप डाउनलोड करके ‘पालि-पखवाड़ा 2020 (प्रतियोगिता)’ ग्रुप की निम्नोक्त लिंक से जुड़ना आवश्यक है-
5. प्रतिभागिता-प्रमाण-पत्र के लिये ई-मेल (E-mail) प्रविष्ट करना आवश्यक है।
पालि-प्रतियोगिता में भागग्रहण करने हेतु नीचे दी गई लिंक का प्रयोग करें-
- संयोजक तथा पालिमित्र








On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 पालि-संस्कृति-पर्व

25 सितम्बर, 2020
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भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत श्रमण-संस्कृति का विशेष स्थान है तथा श्रमण-संस्कृति में भी बुद्ध-संस्कृति एक अत्यन्त पावन संस्कृति है। तथागत भगवान् बुद्ध का शील, समाधि और प्रज्ञा का यह मार्ग सबके हित-सुख की संस्कृति का निनाद करता हुआ सदियों से मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा की शीतल वर्षा करता आ रहा है। आज विपस्सना ध्यान-भावना तथा सामाजिक-प्रासंगिकता के कारण भगवान् बुद्ध की मानवीय एवं कल्याणकारी शिक्षाएं जन-जन में प्रसारित हो रही हैं। तथागत भगवान् बुद्ध की ये शिक्षाएं पालि-भाषा में उपलब्ध होती हैं तथा चारों परिषदों के लिए इसका समान महत्त्व प्रतीत होता है।

तथागत भगवान् गौतम बुद्ध के पावन श्रावक संघ अर्थात् भिक्खु-संघ तथा भिक्खुणी-संघ में पालि भाषा के अध्ययन तथा इसमें उपनिबद्ध सुत्तों के संगायन की सुदीर्घ परम्परा है। इसी प्रकार उपासक-संघ तथा उपासिका-संघ के लिए भी इस भाषा तथा सुत्तों का संगायन आवश्यक है। यद्यपि यह परम्परा भारत में सुदीर्घ-काल तक लुप्तप्राय हो चुकी थी तथा इस धीरे-धीरे पुनः प्रतिष्ठापित हो रही है। अतः इसे संस्थापित करने तथा उपासक-उपासिकाओं में प्रसारित करने हेतु भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक आयोजित किये जा रहे पालि-पखवाड़ा 2020 के अन्तर्गत ‘पालि-संस्कृति-पर्व’ का आयोजन किया जा रहा है।


दिनांक - 25 सितम्बर, 2020
समय - प्रातः 10.00 बजे से 01.00 बजे तथा अपराह्ण 03.00 बजे से 06.00 बजे।


पालि-संस्कृति-पर्व में निम्नोक्त प्रतियोगिताएं आयोजित की जायेंगी-

विधा - विषय/शीर्षक
1. पालि-रंगोळिका - महाबोधि-रुक्खो (महाबोधि-वृक्ष)
2. पालि पेंटिंग/चित्रकला - पठमं धम्मचक्कप्पवत्तनं (प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन)
3. पालि संगीत वादन - स्वयं वाद्यों को बजाकर धम्म सम्बन्धी संगीत-प्रदर्शन
4. धम्म-पालि गीत/कविता - मैत्री सम्पूर्ण धम्म है
5. धम्म-पालि निबन्ध-लेखन - भगवान् बुद्ध का जीवन परिचय
6. नृत्य - सुजाता का सिद्धार्थ गौतम को खीर-दान
7. धम्म-फोटोग्राफी - घर में बुद्ध-पूजा
8. धम्म-पालि शार्ट-मूवी - आओ पालि सीखें
9. धम्म-पालि सृजनात्मक लेखन - बुद्ध के अग्रश्रावक (किसी एक की कथा)
10. धम्म-पालि लघुकथा लेखन - बुद्ध संघ की थेरी (कोई एक)


उक्त विषय में अधिक जानकारी तथा लिंक नीचे दिये गये टेलीग्राम ग्रुप पर दी जायेगी। अतः आप टेलीग्राम एप डाउनलोड करके नीचे दी गई लिंक से जुड़ने का कष्ट करें-




On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 पालि-शिक्षक सम्मेलन (24 सितम्बर, 2020)




On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

पालि-विभाग-प्रमुखों का सम्मलेन

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23 सितम्बर, 2020

"पालि भाषा का महत्त्व और वर्त्तमान-कालिक प्रासंगिकता"


भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान तथा मित्र संगठनों द्वारा दिनांक 17 सितम्बर, 2020 को देवमित्त अनागारिक धम्मपाल जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में ‘विस्स-पालि-गारव-दिवसो’ का आयोजन किया जा रहा है तथा इस दिन को केन्द्रित रखते हुए 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक ‘पालि-पखवाड़ा-2020’ का विशाल स्तर पर आयोजन किया जा रहा है।


इस पालि पखवाड़े के तहत अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। 23 सितम्बर, 2020 को "पालि भाषा का महत्त्व और वर्त्तमान-कालिक प्रासंगिकता" इस विषय पर पालि-विभाग-प्रमुखों के सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा है।

On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

भिक्खुसंघ का सम्मेलन एवं देसना (22 सितम्बर, 2020) 






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पालि-प्रतियोगिता

22-24 सितम्बर, 2020
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- प्रतिदिन पूर्वाह्न में -
10.00 बजे से 01.00 बजे तक
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बच्चे देश, समाज और मानवता का वास्तविक भविष्य हैं। इन्हें करणीय-अकरणीय युक्त समुचित शिक्षा प्रदान करना प्रत्येक माता-पिता और समाज का दायित्व होता है। विशेषतः बच्चों को नैतिकता से अवगत कराना अत्यन्त आवश्यक है। भारत देश में तेजी से परिस्थितियां बदल रही हैं। बढ़ती हुई तकनीकी के वर्तमान-युग में तो बच्चों को नैतिक-शिक्षा तथा सामाजिक-दायित्व से परिचित कराना परम आवश्यक है। माता-पिता, परिवार, समाज तथा देश के प्रति बच्चों में सकारात्मक चिन्तन पैदा करना आज की आवश्यकता है। बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए कि उनका न केवल व्यक्तित्व विकास हो, अपितु चरित्र-निर्माण भी होना चाहिए। इस हेतु तथागत भगवान् बुद्ध की शिक्षाएं वर्तमान-काल में सर्वथा प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण हैं। भगवान् बुद्ध ने अपने जीवन के अनमोल 45 वर्षों तक नैतिक, तर्कशील तथा बौद्धिक समाज के निर्माण हेतु सद्धम्म का प्रचार-प्रसार किया। उनका अनुत्तर धम्म सार्वकालिक, आशुफलदायी तथा मंगलकारी है।

बच्चों में भगवान् बुद्ध की इन नैतिक-शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। साथ ही बुद्ध-परम्परा का ज्ञान भी बच्चों में होना चाहिए। ज्ञातव्य है कि भारतीय-संस्कृति के वास्तविक दर्शन बुद्धवाणी के द्वारा सम्भव हैं। अतः हमें बच्चों को बुद्धवाणी ‘तिपिटक’ तथा इस परम्परा से अवगत कराना परम आवश्यक है। बुद्ध-परम्परा में तथागत भगवान् बुद्ध के 80 अग्रश्रावकों-महाकस्सप, उपालि, आनन्द, अश्वजित्, सारिपुत्र, मोग्गलान इत्यादि-का विशेष स्थान है। इसी प्रकार ‘भदन्ताचार्य’ की अभिज्ञा से प्रसिद्ध बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल ने अट्ठकथाओं का प्रणयन करके बुद्धवाणी के अवबोध कराने में महान् भूमिका निभाई तथा लोककल्याण में सहायक हुए। इसी प्रकार इस परम्परा में बिम्बिसार, प्रसेनजित्, उदयन, देवानंपिय सम्राट् अशोक, हर्षवर्द्धन, मिनाण्डर (मिलिन्द), कनिष्क इत्यादि अनेकानेक दानवीर तथा लोकमंगल की भावना से ओत-प्रोत प्रसिद्ध राजा हुए। इसी परम्परा में नागसेन, दिंगनाग, अश्वघोष, नागार्जुन, आर्यदेव, शान्तिदेव, शान्तरक्षित, असंग, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति सदृश महान आचार्यों के नाम भी ससम्मान लिए जाते है। यह परम्परा प्रतीकों की है। इस परम्परा में ‘महाबोधिवृक्ष’ पावन प्रतीक के रूप में विश्व को मैत्री, शान्ति, करुणा और बन्धुत्व का सन्देश प्रदान कर रहा है। इस प्रकार बच्चों को धम्म के प्रतीकों के विषय में जानकारी होना भी आवश्यक है। इसी प्रकार भगवान् बुद्ध के जीवन और चर्या से जुड़े हुए चार पवित्र तीर्थ-स्थान लुम्बिनी वन, बोधगया, सारनाथ तथा कुशीनगर के विषय में भी बच्चों को ज्ञात होना आवश्यक है।

इस महती परम्परा में आधुनिक काल में भी अनेक महान् आचार्य हुए है। अनागारिक धर्मपाल, धम्मानन्द कोसम्बी, बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेडकर, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, डा. भदन्त आनन्द कौशल्यायन, भिक्खु जगदीश कश्यप, भिक्खु डा. धर्मरक्षित, डाॅ. भरतसिंह उपाध्याय, प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय, प्रो. शान्तिभिक्षु शास्त्री प्रभृति आधुनिक आचार्य इस परम्परा के ध्वज-वाहक हुए, जिन्होंने बुद्ध-धम्म को वर्तमान-युग में लोककल्याण हेतु पुनः संस्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसी तारतम्य में अत्यंत हर्ष के साथ सूचित किया जा रहा है कि देवमित्त अनागारिक धम्मपाल के जन्म-दिनांक 17 सितम्बर को “विस्स पालि गारव दिवस” (विश्व-पालि-गौरव-दिवस) के रूप में मनाया जाता है। भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा इस दिन से आरम्भ करके 15 दिनों यानि एक पखवाड़े तक यह ‘पालि-पखवाड़ा’ रूपी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जूम एप के माध्यम से यह पालि-पखवाड़ा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है।

पालि-पखवाड़ा वस्तुतः एक पालि-उत्सव है तथा इसके अन्तर्गत बच्चों में नैतिक-शिक्षा का प्रसार करने की दृष्टि से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाने सुनिश्चित किये गये हैं। उनमें 22-24 सितम्बर, 2020 की अवधि में बच्चों के लिए ‘पालि-प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत तीन वर्गों में विविध प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित की जायेगी। माध्यमिक स्तर, हाई स्कूल/हायर सेकेण्डरी स्कूल तथा स्नातक/स्नातकोत्तर के इन तीन स्तरों में पालि-गीत, पालि-कविता-पाठ, पालि-निबन्ध-लेखन, भाषण, श्रुत-लेखन, परिचय-लेखन-स्पर्धा, परिचय-कथन-स्पर्धा, संगायन, पालि-ज्ञान-प्रतियोगिता, धम्म-पालि-प्रश्नावली, चित्रकला और रंग भरो प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जायेगा।
सभी प्रतियोगिताएँ जूम, गूगल मीट, टेलीग्राम, व्हाट्स-अप, गूगल फार्म इत्यादि के माध्यम से आयोजित की जायेंगी।
समस्त प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया जायेगा तथा समस्त प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र प्रदान किया जायेगा।

नोट-
1. प्रति प्रतियोगिता के नियम और निर्देश पृथक से प्रदान किये जायेंगे।
2. सभी को एक लिंक के माध्यम से रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा।
3. प्रतियोगिताओं की लिंक बाद में बताई जायेगी।
4. सभी को टेलीग्राम एप डाउनलोड करके ‘पालि-पखवाड़ा 2020 (प्रतियोगिता)’ ग्रुप की निम्नोक्त लिंक से जुड़ना आवश्यक है-


- संयोजक तथा पालिमित्र





On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 त्रिदिवसीय वेबीनार

उपशीर्षक

धम्म-लिपि के विविध आयाम
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19-21 सितम्बर, 2020
उद्घाटन-सत्र
1. प्रमुख वक्तव्य
2. धम्म-लिपि का उद्भव एवं विकास
3. धम्म-लिपि के लेखन की सामग्री या स्रोत
4. धम्म-लिपि के गूढ़ाक्षरों को पढ़ने के विभिन्न प्रयास
5. प्रिंसेप द्वारा धम्म-लिपि को पढ़ने की कथा
6. धम्म-लिपि और महावंस के अनुवाद की कथा
द्वितीय-सत्र
7. धम्म-लिपि नायक जेम्स प्रिंसेप
8. साँची-दानं: एक सूत्र
9. धम्म-लिपि की खोज का आधुनिक भारत के
इतिहास और संस्कृति पर प्रभाव
10. खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपि का सह-सम्बन्ध
तृतीय-सत्र
11. धम्म-लिपि के विविध स्वरूप
12. धम्म-लिपि की प्रमुख विशेषताएँ
13. अरियानो पालि
14. धम्म-लिपि का विभिन्न लिपियों पर प्रभाव
चतुर्थ-सत्र
15. सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि और धम्म-लिपि का
तुलनात्मक विवेचन
16. सम्राट् अशोक के शिलालेखों की विषय-वस्तु
17. ब्राह्मी-लिपि अथवा धम्म-लिपि
18. धम्म-लिपि और पालि-भाषा का अन्तःसम्बन्ध
प´्चम-सत्र
19. धम्म-लिपि के प्रतिचित्रण की प्रविधि
20. धम्म-लिपि के लिप्यन्तरण सम्बन्धी टूल्स
21. धम्म-लिपि के फोण्ट्स की समस्याएँ और समाधान
छट्ठ-सत्र
22. धम्म-लिपि सीखाने एवं जनप्रिय बनाने के
विविध उपक्रम और उपाय
23. धम्म-लिपि सीखाने हेतु शिक्षण सामग्री निर्माण की
आवश्यकता और करणीय कार्य

समापन-सत्र
24. धम्म-लिपि-साक्षरता की आवश्यकता, महत्त्व एवं उपाय





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त्रिदिवसीय वेबीनार (पालि-पखवाड़ा, 2020 के अन्तर्गत)

धम्म-लिपि के विविध आयाम
(Different Dimensions of Dhamma-Script)
..................................................
19-21 सितम्बर, 2020

‘धम्म-लिपि’ भारत देश की एक अत्यन्त प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण लिपि है। इसे ‘ब्राह्मी-लिपि’ के नाम से भी जाना जाता है। इस लिपि में देवानंपिय सम्राट् अशोक के शिलालेख प्राप्त होते हैं। सर्वविदित तथ्य है कि सम्राट् अशोक के ये शिलालेख विश्व के कल्याणकारी और महानतम सम्राट् के मैत्रीपूर्ण चित्त के निदर्शन हैं। अतः धम्म-लिपि सम्राट् अशोक के करुण-चित्त के निदर्शन-भूत शिलालेखों की वाहिका है।

इस लिपि में विविध प्रकार की सामग्री प्राप्त होती है तथा विविध स्रोतों में इसका प्रयोग किया गया है। शिलालेखों, सिक्कों, ताम्रपत्रों, मृदापात्रों इत्यादि पर इस लिपि द्वारा लिखी गयी पुरातात्त्विक महत्त्व की सामग्री प्राप्त होती है। कालान्तर में इस लिपि का भारत तथा अन्य देशों की लिपियों पर भी गहन प्रभाव पड़ा। आज की आधुनिक लिपियाँ अनेक मायनों में धम्म-लिपि की ऋणी हैं।

प्रतिक्रान्ति के पश्चात् बुद्ध-धम्म के लुप्त होने पर यह लिपि भी लुप्त हो गयी तथा एक समय ऐसा भी आया कि तात्कालिक भारत में इसे पढ़ने वाला कोई नहीं रह गया। इस देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि पूर्ण रूप से विकसित तथा जन-जन में प्रसारित यह लिपि लुप्त हो गयी थी। खैर, कालान्तर में इस लिपि को पढ़ने के अनेक प्रयास किये गये। दिल्ली के सुलतान फीरोजशाह तुगलक (1351-88) ने मेरठ और अंबाला के तोपड़ा गांव से सम्राट् अशोक शिलालेखों को मंगवाकर दिल्ली के फीरोजशाह कोटला तथा कोशके शिकार नामक जगहों पर खड़े करवाया था। उस समय भी इन शिलालेखों की लिपि को पढ़ने के प्रयास हुए थे, किन्तु आज वे मनगढन्त सिद्ध हो गये। 1784 में ‘एशियाटिक सोसाइटी’ की स्थापना के पश्चात् यूरोपीय विद्वानों द्वारा भारत के प्राचीन लेखों का अध्ययन-अनुसन्धान किया जा रहा था। इसी दौरान उन्होंने दिल्ली और इलाहाबाद के 2300 साल पुराने लेख पढ़ने में कठिनाई महसूस हो रही थी। फिर 1837 में एक महान् अंग्रेज विद्वान् जेम्स प्रिंसेप (1799-1840) ने इस लिपि के गूढ़ाक्षरों को पढ़ने में सफलता हासिल की और संयोग से इसी वर्ष जार्ज टर्नर द्वारा महावंस का अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात् प्राचीन भारतीय बौद्ध विरासतों की खोज आरम्भ हुई और एक के बाद एक विरासतें खोजी जाने लगी। आज बुद्ध की धरती भारत पुनः तिरतनों के आलोक से प्रकाशित हो रही है। द्वितीय-बुद्धशासन में यह अनुत्तर सद्धम्म जन-जन के हित-सुख के लिए प्रसरित हो रहा है।
धम्म-लिपि के पढ़ लिये जाने के पश्चात् भारतीय इतिहास और संस्कृति के अनेक लुप्तप्राय तथ्य प्रकट हुए। जिन विभूतियों, राजाओं अथवा विद्वानों को पौराणिक पात्र मानकर उनका वर्णन किया गया-वे वस्तुतः इतिहास-प्रसिद्ध सिद्ध हो गये। अनेक ऐसी किंवदन्तियां या मान्यतायें, जिन्हें ऐतिहासिक करार दिया गया था, वे पौराणिक और कपोल-कल्पित सिद्ध हुई। आज भी बहुत सारी भ्रान्तियां, अन्धविश्वास और मिथ्या-धारणायें भारतीय समाज में मौजूद है, जो पुनर्जागरण-काल से तथाकथित इतिहासकारों, लेखकों और मठाधीशों के द्वारा फैला दी गई थीं। ये बातें एक वर्गविशेष के लाभ की दृष्टि से विकसित तथा प्रचारित की गई थीं। आज भारतीय इतिहास और संस्कृति के तत्त्वों को ‘सबाल्टर्न दृष्टिकोण’ (Subaltern point of view) से देखने की आवश्यकता है। इस दृष्टि को विकसित करने में धम्म-लिपि अपने आप में एक प्रतीक-स्वरूप है। भारतीय मानस में वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और वास्तविक तथ्यों को सत्य के धरातल पर स्थापित करने में धम्म-लिपि का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस मायने यह महत्त्वपूर्ण लिपि शिक्षणीय, अनुसन्धेय, संरक्षण-योग्य और प्रचार-प्रसार करने योग्य है।

धम्म-लिपि एक अत्यन्त व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक लिपि है। इसमें जैसा लिखा जाता है, ठीक वैसा ही पढ़ा भी जाता है। इसी प्रकार यह एक सरल लिपि है। थोड़े से अभ्यास के पश्चात् इस लिपि को आसानी से सीखा जा सकता है। आज कुछ कर्मठ धम्मानुयायियों के प्रयासों से पुनः यह लिपि जन-जन में प्रसारित हो रही है तथा लोकप्रिय हो रही है। बुद्धभाषित पालि-भाषा के साथ-साथ इस लिपि को सीखना बहुत आवश्यक है।

धम्म-लिपि के विषय में आज भी अनेक तथ्य अस्पष्ट तथा भ्रान्त हैं। इस लिपि की प्राचीनता, इसके स्वरूप, इसकी खोज की कथा, नामकरण, प्रमुख लक्षण, अन्य लिपियों पर प्रभाव इत्यादि विषय आज भी अनुसन्धेय हैं तथा निरन्तर संवाद की आवश्यकता का अनुभव कराते हैं। सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि तथा धम्म-लिपि का समीक्षात्मक अध्ययन भी आवश्यक है। भारत में प्रतिदिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ पुरातात्त्विक सामग्री प्राप्त होती है, किन्तु सम्बद्ध विभागों में लम्बी प्रक्रिया के बाद भी इन पर अंकित विषय को नहीं पढ़ा जा सकता है अथवा उसका गलत तरीके से पाठ कर लिया जाता है। आज भारत में इसी प्रकार के अपपाठ अथवा गलत व्याख्या के कारण अनेक ऐतिहासिक तथ्य विपरित दिखाई देते हैं। अनेक बौद्ध-विरासतें विधर्मियों द्वारा हथिया ली जाती है। अतः इस लिपि के जन-जन में प्रसार की आवश्यकता है, ताकि बच्चा-बच्चा इन पुरातात्विक धरोहरों पर अंकित लेखों को पढ़ सके तथा अपनी धरोहर को सुरक्षित करने में अपना योगदान दे सके। इस विषय में अधिक कार्य करने की आवश्यकता निरन्तर प्रतीत होती है। इस हेतु ‘धम्म-लिपि साक्षरता अभियान’ की महती आवश्यकता है। इसी प्रकार तकनीकी के इस युग में विभिन्न तकनीकी टूल्स के विषय में सभी को ज्ञान होना चाहिए तथा ‘आॅनलाईन ब्राह्मी-लिप्यन्तरण’ "https://aksharamukha.appspot.com/#/converter" को भी लोगों में प्रसारित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार धम्म-लिपि के फोण्ट्स् के विषय में भी संवाद की आवश्यकता है।

इन समस्त विषयों को दृष्टिगत रखते हुए 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक आयोजित ‘पालि-पखवाड़ा, 2020’ के अन्तर्गत विविध कार्यक्रमों के अन्तर्गत ‘धम्म-लिपि के विविध आयाम’ विषय पर तीन दिवसीय वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें उक्त विषयों के साथ-साथ धम्म-लिपि के प्रचार-प्रसार हेतु वर्तमान-समय में किये जा रहे कार्यों का निदर्शन भी किया जायेगा तथा इसे सरलतापूर्वक सीखाने हेतु निर्मेय शिक्षण-सामग्री के विषय में भी चर्चा की जायेगी।

‘धम्म-लिपि के विविध आयाम’ इस शीर्षक द्वारा आयोजित इस वेबीनार में आपका हार्दिक स्वागत है। आप भी वेबीनार के संयोजकों से सम्पर्क करके अपना दिनांक 10 सितम्बर, 2020 तक अपना शोध-पत्र भेज सकते हैं। योग्य होने पर इसे प्रकाशित किया जा सकता है।

यथा-समय आपको इस कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा से भी अवगत कराया जायेगा।
संयोजक एवं धम्मलिपि-मित्र
डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल (81264 85505)
इंजी. भारत वनकर (94040 79692)
आयु. अमित मेधावी (89994 67899)





On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 * World Pali Pride Day *

One day online Pali discussion session organized on this occasion (Webinar)
* Topic :- Contribution of Anagarik Dhammpal in Pali and Buddhalogy for the sake of God 17 September 2020 *
Don David was born on September 17, 1864 at the home of Don Carolis Hemavitaran (father) and Mallika Dharmagunvardhane (mother) in Colombo, Sri Lanka. Joe later became famous for his work as Devmitra Anagarik Dhammpal. David's father was a well-known businessman, so naturally his education system was in an English missionary school. Living and learning like Europeans could not attract him for long. In 1883, an English Catholic crowd in Sri Lanka attacked a Buddhist procession, so Dharmapal left the school of missionaries. And their passion for Buddhism increased in the same year, the founder of Theaosophical Society Colonel Henry Steel Olcot and Madam Blavaski reached Sri Lanka and filed a case against the injured Buddhists in the attack. Seeing the virtue of the Buddhist revival in Sri Lanka, Dharmapal also became a member of Theo-Sofical Society. Heekduve of that time by Shrisumangal Mahathero Studied Pali language and took the diksha of Buddhism. Understanding the Pali language carefully, he understood the thin-meaning of Buddhist education and religion, and he called himself a name, anagari, and his efforts started from here, the journey...
Dhamma Yatra of Anagari Dhammpal ji....
What was collected in the past and imaginary things, the journey of giving historical form of Tathagat and establishing Buddhism again in India...
On January 1891, 1891, Anagarik Dhammpal ji came to India and seeing the plight of Mahabodhi Maha Vihar at Bodhgaya, his eyes started to shed tears. Seeing the picture, his mind was given that it will be okay even if my whole life is over, but Mahabodhi Mahavihar will be restored to his grandeurity, Anagarik Dhammpal sent many letters to Buddhists in Japan, Burma, and Sri Lanka to protect the Mahabodhi Mahavihara in Colombo on 31 May 1891, 1891 for the revival of Mahabodhi Mahavihara and other Buddhist sites in India as well as the Mahavihar from Pandya Pujari. Kelly gave his 13th presidential post to Parampawan Dalai Lama. Not only Bodhgaya but also struggled for the release of Mahabodhi Mahavihar and Stupa at Nalanda Rajgruh Sarnath, the Maha Bodhi Society filed a crazy petition on behalf of the Maha Bodhi Society, which demanded that Mahabodhi Mahavihar and three more. The sacred places of famous Buddhists such as Kushinara, Sarnath and Nalanda should also be handed over to the Buddhists, Ashutosh Mukherjee fought this case on behalf of Anagarik Dhampal. Slowly the Buddhist people were kept in the Mahabodhi Mahavihar committee but even today there are half Hindus and half Buddhists in that committee. The chairman of the committee is a collector at Bodhgaya who is not a Buddhist. Anagarik Dhammpal ji represented the Buddhists at the Vishwa Dharma Parishad held in Chicago in America in 1893 Swami Vivekananda was given time to discuss Hindu religion due to his intervention. Until the last moment of his life, Anagarik Dhammpal ji along with Sri Lanka created schools, hospitals and Buddha vihars to enhance Pali and Buddhist education in many countries. On 13 July 1931, 1931, Anagarik Dhammpal became the first Shramner and on 16 January 1933 He became a beggar after being a sub-property and he was named as a monk for the sake of God..
In 1933, on 29 April 29, at the age of 69 at Sarnath, his bones are kept in a small stupa of stone at Mulgandh Kuti Vihar in Sarnath. He has a great contribution in the revival of Dhamma including Pali language and Buddhist education. Seeing this, we Indians celebrate their * Birthday on 17th September * as * World Pali Pride Day * This year, due to Corona, we are going to call a national seminar by Google Meet, following the rules of social distancing, the topic, the contribution of Anagari Dhammpal has been confirmed for the development of Pali and Buddhist education. You also remember the main topics given below and your search restrictions, Goshwara till September 10
prafullgadpal@gmail.com
Or
vikas.sing.gautam@gmail.com or
You can send on email.
Your search, management, will be published in the form of books
1) Journey from John David to God's orphan Dhammpal
2) The love of the anagarik towards the turn
3) Buddhist revival movement in Sri Lanka by Pali language..
4) Contribution of Anagari Dhammpal ji for the development of Buddhist education
5) Anagarik Dhammapal started the Buddhist revival movement in India...
6) Buddhist party unemployed Dhammapal in Chicago Vishwa Dharma Parishad...
7) Dr. Babasaheb Ambedkar and unarmed Dhammpal..
8) Anagari Dhammapal's contemporary pali scholars's view towards them....
9) Relationship between Sri Lanka and India and unarmed Dhammapal....
10) Anagari Dhammpal's thoughts on therapy and Mahayana...
11) Anagari Dhammpal's foreign travel...
12) Any other subject that is related to unarmed Dhampal as well as modern time..
The show outline will be available to you soon as you google meet link time....
The coordinator and our parents
- Dr. Prafulla Gadpal (+ 91 8126485505)
- Dr. Vikas Singh (+ 91 971157933)
- Mr. Sugat Shanteya (+ 91 9561083358)




On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 एहि पस्सिको 

                          ... "विस्स-पालि-गारव-दिवस" ...

                                 17 सितम्बर, 2020

                   के उपलक्ष्य में आयोजित द्विदिवसीया 

                                ऑनलाईन पालि संगोष्ठी

                                        -: विषय :- 

                        देवमित्त अनागारिक धम्मपाल का 

               पालि और बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान

                                              ---

                                   17-18 सितंबर, 2020

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श्रीलंका के कोलंबों में डॉन केरोलिस हेवावितारण (पिता) और मल्लिका धर्मागुणवर्धने (माता) के घर में 17 सितंबर 1864 को डॉन डेविड का जन्म हुआ, जो बाद में अपने कार्यों से देवमित्त अनागारिक धम्मपाल नाम से लोक-विख्यात हुआ। डेविड के पिता एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, तो स्वाभाविक था उनकी शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी मिशनरी स्कूलों में हुई। यूरोपीय रहन-सहन और शिक्षा उन्हें ज्यादा दिन तक बांध नहीं पाई। 1883 में श्रीलंका में अंग्रेज कैथोलिकों की भीड़ ने एक बौद्ध जुलूस पर हमला किया, तो धर्मपाल ने मिशनरी स्कूल छोड़ दिया और बौद्ध धर्म के प्रति उनका झुकाव बढ गया। उसी वर्ष थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक कर्नल हेनरी स्टील ओल्कोट और मैडम ब्लावत्स्की श्रीलंका पहुंचे और हमले में घायल हुए बौद्धों की ओर से मुकदमा दायर किया। श्रीलंका में बौद्ध पुनरुत्थान के पुनीत कार्य को देखकर धर्मपाल भी थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य बन गए।

उन्होंने तत्कालीन भदंत हिक्कडुवे श्रीसुमंगल महाथेर से पालि भाषा की शिक्षा ली और बौद्ध धर्म ग्रहण किया। पालि भाषा को गहराई से जानकर उन्होंने बौद्ध विद्याओं और धम्म की बारीकियों को समझा तथा अपना एक  नया नाम दिया अनागारिक और यहीं से आरम्भ होती है - अनागारिक धर्मपाल जी की धम्मयात्रा जो काल-कवलित और पौराणिक गप्प कथाओं में कल्पना बना दिए गए तथागत बुद्ध की तथता को पुनः ऐतिहासिक स्वरूप देने की और भारत में पुनः बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।

जनवरी 1891 को अनागारिक धम्मपाल जी भारत आए और बोधगया के महाबोधि महाविहार की दुर्दशा को देखकर उनकी आंखों से अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी। इस दुर्दशा को देखकर उनके चित्त में जो बोधि उत्पन्न हुई कि मैं अपना जीवन लगा दूंगा किन्तु महाबोधि महाविहार को उसकी भव्यता लौटा के रहूँगा। अनागारिक धर्मपाल जी ने जापान, बर्मा, श्रीलंका के बौद्धों को कई पत्र लिखे महाबोधि महाविहार के संरक्षण के लिए। 31 मई 1891 को कोलम्बो में उन्होंने महाबोधि महाविहार के साथ-साथ भारत के अन्य बौद्ध स्थलों के पुनरुद्धार और पुजारियों से मुक्ति के लिए महाबोधि सोसायटी का निर्माण किया जिसके अध्यक्ष 13वें परम पावन दलाई लामा जी बनाए गए। 

महाबोधि महाविहार के बाहर अनागारिक धम्मपाल  जी ने महाबोधि सोसायटी की शाखा स्थापित की जिसके माध्यम से न केवल बोधगया अपितु नालन्दा, राजगृह, सारनाथ आदि के महाविहारों और स्तूपों की मुक्ति का संघर्ष किया गया। महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागारिक धर्मपाल जी ने एक सिविल याचिका दायर की जिसमें मांग की गई थी की महाबोधि महाविहार और दूसरे अन्य तीन प्रसिध्द बौद्ध-स्थलों कुशीनगर, सारनाथ और नालन्दा को बौद्धों को हस्तांतरित किया जाये। अनागारिक धर्मपाल जी की तरफ से यह केस आशुतोष मुखर्जी ने लड़ा था। धीरे-धीरे महाबोधि महाविहार के प्रबंधन में बौद्धों को रखा जाने लगा, किन्तु आज भी उस समिति में आधे हिन्दू और आधे बौद्ध होते हैं तथा अध्यक्ष गया का जिला कलेक्टर होता है जो अमूमन बौद्धेतर ही होता है।

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित की गई विश्व धर्म संसद में अनागारिक धर्मपाल जी ने बौद्धों का प्रतिनिधित्व किया। इन्हीं के प्रयासों से हिन्दू धर्म पर विचार रखने के लिए स्वामी विवेकानन्द जी को भी समय दिया गया। अपने जीवन के अंतिम समय तक अनागारिक धर्मपाल जी ने श्रीलंका सहित दुनिया के अनेक देशों में पालि एवं बौद्ध विद्या के संवर्धन हेतु स्कूलों, अस्पतालों और बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया।

13 जुलाई 1931 में अनागारिक धर्मपाल जी ने सामणेर (श्रामणेर) के रूप में प्रव्रज्या ली और 16 जनवरी 1933 को उपसंपदा हुई और वे भिक्खु बने तथा उनका नाम देवमित्त धम्मपाल हुआ। सन् 1933 में 29 अप्रैल को  69 वर्ष की आयु में सारनाथ में परिनिब्बुत हुए। उनकी अस्थियाँ सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में ही पत्थर के एक छोटे स्तूप में स्थापित की गई हैं।

पालि भाषा और बौद्ध विद्याओं सहित धम्म के पुनर्जागरण में उनके महान्  योगदान को देखते हुए हम भारतवासी उनके जन्म दिनांक 17 सितम्बर को “विस्स पालि गारव दिवस” के रूप में मनाते हैं। इस साल कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हम गूगल मीट के माध्यम से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी 17-18 सितम्बर, 2020 को आयोजित कर रहे हैं जिसका विषय “अनागारिक धम्मपाल का पालि और बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान” निश्चित किया है। आप भी नीचे दिए गए विभिन्न उपविषयों और मुख्य विषय को ध्यान में रखकर अपने पूर्ण शोधपत्र, सारसहित 10 सितम्बर तक prafullgadpal@gmail.com  अथवा vikas.sing.gautam@gmail.com पर भेज सकते हैं। 

आपके शोधलेखों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा।

उपविषय: -

1. जॉन डेविड से देवमित्त अनागारिक धम्मपाल तक की यात्रा

2. अनागारिक धम्मपाल जी का पालि के प्रति उमड़ता प्रेम

3. पालि भाषा के द्वारा श्रीलंका में बौद्ध पुनर्जागरण आंदोलन

4. अनागारिक धम्मपाल जी द्वारा पालि एवं बौद्ध विद्या के संवर्धन में योगदान

5.  अनागारिक धम्मपाल द्वारा भारत में बौद्ध पुनर्जागरण आंदोलन का आरम्भ

6. शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में बौद्ध पक्षकार अनागारिक धम्मपाल

7. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर और अनागारिक धम्मपाल 

8. अनागारिक धम्मपाल के समकालीन पालि विद्वानों का उनके प्रति नजरिया 

9. श्रीलंका और भारत के वैदेशिक संबंध और अनागारिक धम्मपाल

10. थेरवाद और महायान पर अनागारिक धम्मपाल जी के विचार

11. अनागारिक धम्मपाल जी की विदेश यात्राएं

12. अन्य कोई भी विषय जो अनागारिक धम्मपाल जी तथा आधुनिक पालि से संबंधित हो।

कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा तथा Google Meet की लिंक आपको यथाकाल अवगत करा दी जायेगी।

                                                                       संयोजक एवं आपके पालिमित्र 

                    -डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल (81264 85505)

                          -डॉ. विकास सिंह (97115 7933)

                    -आयु. सुगत शान्तेय (95610 83358)







On September 07, 2020 by Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation   No comments

 पालि-पक्खुस्सवो (पालि-पक्षोत्सव)

Pali-fortnight
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17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020
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।। सुखं पालिभासाय अज्झेनं, सुखं च परियत्ति-सासनं ।।
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देवमित्त अनागारिक धम्मपाल बौद्ध-पुनर्जागरण के सूत्रधार के रूप में जाने जाते हैं। उनके द्वारा किये गये कार्यों का भारतीय समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने भगवान् बुद्ध की धरती भारत में बुद्ध को पुनः लौटाया है। बौद्ध-धम्म के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थानों की विमुक्ति और संवर्धन के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था तथा अनेक जन-कल्याणकारी कार्य किये। पालि भाषा और बौद्ध विद्याओं सहित धम्म के पुनर्जागरण में उनके महान् योगदान को देखते हुए हम भारतवासी उनके प्रति कृतज्ञ हैं तथा उनके जन्म-दिनांक 17 सितम्बर को “विस्स पालि गारव दिवस” (विश्व-पालि-गौरव-दिवस) के रूप में मनाते हैं। इस दिन से 15 दिनों यानि एक पखवाड़े तक यह ‘पालि-पखवाड़ा’ रूपी उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
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इस वर्ष भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान के द्वारा 17 सितम्बर, 2020 से 01 अक्टूबर, 2020 तक यह "पालि-पखवाड़ा" पूर्ण उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जूम एप के माध्यम से यह पालि-पखवाड़ा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है।
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पालि-पखवाड़ा वस्तुतः एक पालि-उत्सव है तथा इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाने सुनिश्चित किये गये हैं। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी, धम्म-लिपि पर संगोष्ठी, विद्यार्थियों के लिए पालि-प्रतियोगिताएँ, पावन भिक्खु-संघ की देशनाएँ, पालि-विभागाध्यक्षों का सम्मेलन, पालि-शिक्षक सम्मेलन, पालि-संस्कृति-पर्व, पालि विद्वानों का सम्मान, धम्म-देशना, पालि-संगोष्ठी तथा विशिष्ट-व्याख्यानमाला आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।
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इस पालि पखवाड़े में आपकी सहभागिता प्रार्थनीय है।
-संयोजक, पालि-पक्खुस्सवो 2020