Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

अट्ठमो पाठो
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प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
‘पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका हार्दिक स्वागत है। इस पाठ में आपको पालि भाषा की वर्णमाला के विषय में बताया जायेगा। आप जानते हैं कि किसी भी भाषा को जानने के लिये वर्णों का ज्ञान बहुत जरुरी होता है। इस पाठ को पढ़कर आप पालि भाषा के वर्णों के विषय में ठीक से जान पायेंगे।
कच्चायन-व्याकरण के अनुसार 41 वर्ण ही माने गये हैं। इन वर्णों में 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं। यथा-
स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ।
व्यंजन -
‘क’ वर्ग - क ख ग घ ङ
‘च’ वर्ग - च छ ज झ ञ
‘ट’ वर्ग - ट ठ ड ढ ण
‘त’ वर्ग - त थ द ध न
‘प’ वर्ग - प फ ब भ म
अन्तःस्थ - य र ल व
ऊष्म - स ह
ळ अं
अब इन वर्णों के विषय में कुछ आवश्यक तथा तकनीकी बातों को सावधानीपूर्वक जानना अत्यन्त चाहिए। जैसे कि ऊपर बताया जा चुका है कि पालि में 8 ही स्वर हैं।
स्वर वर्ण के विषय में ज्ञातव्य महत्त्वपूर्ण बातें -
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ - ये 8 स्वर हैं।
इन वर्णों को ध्यानपूर्वक याद करें। पालि में 8 ही स्वर होंगे-न कम, न ज्यादा।
ध्यान रखें कि इनमें दो-दो स्वरों के जोड़े को ‘सवर्ण’ (समान वर्ण) कहा जाता है।
जैसे-
(1) अ, आ
(2) इ, ई
(3) उ, ऊ
(4) ए, ओ
इन प्रत्येक वर्ग के प्रथम वर्ण को निम्न लिखित स्वरो को ‘ह्रस्व’ (छोटा/लघु) कहा जाता है-
ह्रस्व स्वर - अ, इ, उ
इसी प्रकार निम्नोक्त स्वर दीर्घ (बड़ा/गुरु) कहे जाते हैं -
दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ए, ओ।
व्यंजन वर्णों के विषय में महत्त्वपूर्ण तथ्य -
पालि के व्यंजनों को पाँच-पाँच वर्णों के रूप में व्यवस्थित किया गया है। जैसे - कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग। इसके अतिरिक्त अन्तस्थ, ऊष्म तथा अन्य वर्ण भी वर्णमाला के अन्तर्गत आते हैं। ध्यानपूर्वक इन्हें लिखकर याद करें-
‘क’ वर्ग - क ख ग घ ङ
‘च’ वर्ग - च छ ज झ ञ
‘ट’ वर्ग - ट ठ ड ढ ण
‘त’ वर्ग - त थ द ध न
‘प’ वर्ग - प फ ब भ म
अन्तःस्थ -य र ल व
ऊष्म - स ह
ळ अं
इस प्रकार वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 33 होती है। जिनमें पाँच-पाँच वर्णों के पाँच वर्ग बनाये गये हैं। इन वर्गों का नामकरण इनके वर्गों के प्रथम वर्ण के नाम पर रखा गया है। जिस प्रकार परिवार के प्रथम सदस्य (बड़े व्यक्ति) के नाम से उस घर की पहचान होती है, कि यह अमुक का घर है; उसी प्रकार वर्ग के प्रथम वर्ण के आधार पर उस वर्ग का नाम निर्धारित किया गया है। जैसे- कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग। इन वर्गों को बहुत ध्यानपूर्वक तथा सावधानीपूर्वक जानें।
आगे चलकर इसकी बहुत आवश्यकता पड़ती है तथा आपको भाषा के अनेक पहलुओं को जानने-समझने में सहायता मिलती है।
स्मरणीय बातें-
अब आप निम्नोक्त बातों को ध्यानपूर्वक स्मरण रखें।
1. ‘अं’ को निग्गहीत कहा जाता है। निग्गहीत का तात्पर्य है-अनुस्वार। यानि शब्द पर ( ं ) अनुस्वार लगाया जाता है, तो उसे निग्गहीत कहते हैं। जैसे-
बुद्धं - इसमें बुद्ध के साथ जो ( ं ) लगाया गया, वह निग्गहीत है।
2. पालि में ‘म्’ का प्रयोग नहीं किया जाता। वस्तुतः पालि में हलन्त होता ही नहीं। यानि व्यंजन-वर्ण हलन्त नहीं होते और न पद के अन्त में स्थित निग्गहीत ‘म्’ की लिखा जाता है। यथा-
पालि में ‘बुद्धं सरणं गच्छामि’ लिखा जाता है।
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ अशुद्ध है। (पालि में ‘म्’ तो होता ही नहीं।)
3. पालि भाषा में ‘श’ और ‘ष’ का प्रयोग नहीं होता है। इनके स्थान पर केवल ‘स’ का ही प्रयोग किया जाता है।
4. पालि भाषा में ‘ऋ’ नहीं होता।
5. इस भाषा में विसर्ग ( : ) भी नहीं होता है। अतः किसी भी शब्द में विसर्ग को योजन नहीं करना चाहिए।
6. इसमें ‘ऐ’ तथा ‘औ’ भी नहीं होते हैं। 'ऐ' की जगह "ए" और 'औ' की जगह "ओ" का प्रयोग किया जाता है।
7. इसमें क्ष, त्र, ज्ञ का प्रयोग नहीं होता है। प्रायः क्ष के स्थान पर ‘क्ख’, त्र के स्थान पर ‘त्त’ तथा ज्ञ के स्थान पर ‘ञ’ का प्रयोग किया जाता है।
8. पालि में विसर्ग और रेफ भी नहीं होते। रेफ का कहीं-कहीं लोप हो जाता है और कहीं-कहीं वह ‘र’ के रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे-
सुरियो - सूर्य
अरियो - आर्य
करियं - कार्य
कहीं कहीं हटकर समीपस्थ आधा अक्षर भी आ जाता है। जैसे-
कम्म - कर्म
धम्म - धर्म
र् का भी लोप होता है। जैसे-
जैसे- पकासो - प्रकाश
परिस्समो - परिश्रम
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि पालि-व्याकरण के महान् वैयाकरण आचार्य मोग्गलान ने अपने मोग्गल्लान-व्याकरण में ‘एॅ’ तथा ‘ओ ॅ’ को भी वर्ण माना हैं। इसका अनुकरण बाद के आचार्यों ने भी किया। ये दोनों वर्ण ह्रस्व माने जाते हैं। अतः आचार्य मोग्गलान के अनुसार 43 वर्ण माने गये हैं।
नोट-पालि भाषा में ‘ळ’ वर्ण विशेष है। यह हिन्दी तथा लौकिक संस्कृत में प्रयुक्त नहीं होता, किन्तु मराठी तथा पंजाबी में इसका प्रचलन है।
यह भी जाने कि वैदिक भाषा में 64 वर्ण होते हैं और संस्कृत में 50, लेकिन पालि भाषा में 43 या 41 वर्ण होते हैं।
पालि की इस वर्णमाला को ठीक तरह से याद करें तथा लेखन के अवसर पर इनका अच्छी तरह प्रयोग करें।
प्रायः यह देखने में आता हैं कि बहुत सारे लोग वर्तनियों (मात्राओं) का प्रयोग ठीक से नहीं करते अथवा लापरवाह रहते हैं। पालि के अध्येता के लिए यह बहुत आवश्यक है कि शब्दों को शुद्ध रूप में लिखे। प्रायः महाराष्ट्र में यह देखा गया है कि यहाँ मात्राओं का इस्तेमाल मराठी-प्रभाव के कारण अशुद्ध दिखाई देता है।
यहां कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-
शुद्ध अशुद्ध
नागपुर नागपूर
मुम्बई मूम्बइ
गच्छामि गच्छामी
वन्दामि वंदामी
बुद्धं बूद्धं
ध्यानपूर्वक ध्यानपुर्वक
रूप रुप
अतः इस विषय में ध्यान देते हुए केवल शुद्ध रूप में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए। पालि में तो इसका अत्यधिक महत्त्व है। आप यह भी जान लीजिये कि यदि आप ठीक तरह से पालि सीख जाते हैं, तो आप अपनी भाषा में भी पारंगत होते जाते हैं। अतः इसे ध्यानपूर्वक पढ़कर मनःसात् करें।
घर में ही रहें। सुरक्षित रहें। बार-बार अपने हाथों को धोते रहे। अपना तथा अपनों का ध्यान रखें।
!!! भवतु सब्बमंगलं !!!
सबका मंगल हो
साधुवादो
- डा. पप्फुल्ल-गडपालो
81264 85505

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