Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

दुतियो पाठो
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आदरणीय महानुभावो एवं मित्रो!
नमो बुद्धाय!

‘पालि भाषा शिक्षण के इस समूह में आपका हार्दिक स्वागत है।

पालि-शिक्षण रूपी बुद्धवाणी के ज्ञानाधारित इस मंगल-पथ हमने कदम रख दिया है। अब कदम-कदम चलते हुए इस मार्ग में प्रगति करते हुए वांछित गन्तव्य में पहुँचने का सत्संकल्प लें। धीरे-धीरे आप वहाँ तक अवश्य पहुँच जायेंगे।

पालि सीखना बहुत सरल है। वस्तुतः पालि एक सरल भाषा है। विशेषतः भारतीयों के लिए तो यह सरल है ही। भारत के किसी भी प्रान्त के निवासियों के लिए सचमुच पालि सीखना एक सरल कार्य है। चाहे मराठी-भाषी लोग हो या गुजराती; हिन्दी-भाषी हो या हिन्दी की किसी भी उपभाषा या बोली को बोलते हो; गुजराती हो या पंजाबी; भोजपुरी, मगधी (मागधी) या मैथिली बोलने वाले हो अथवा ओड़िआ (उड़िया) में दैनिक-व्यवहार सम्पादित करने वाले हो; हरियाणवी (कौरवी इत्यादि) में भावाभिव्यक्ति करते हो या राजस्थानी (मारवाड़ी इत्यादि) का इस्तेमाल करते हो; राजस्थान की भाषा से अपने मन की बात करने वाले हो या पर्वतीय भाषाओं (हिमाचली, गढ़वाली, कुमाउँनी या पूर्वोत्तर की भाषाएँ) में भाषण करते हो अथवा दक्षिण-भारतीय भाषाओं से अपना काम निपटाते हो - सभी भाषाओं में 70-75 प्रतिशत या अधिक शब्द पालि-भाषा के ही हैं। एकदम वैसे ही या थोड़े से परिवर्तन के साथ हम भारतीय अपने दैनिक जीवन में पालि के ही शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस मायने अंशतः कहीं न कहीं हम पालि ही बोलते हैं। इसी कारण पालि पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैसे हम अपनी ही भाषा को पढ़ रहे हैं। सच ही यह प्राचीन भारत में एक बहुत बड़े क्षेत्र में पालि एक जनभाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। यह जन-भाषा थी। जन-जन इस भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति कर रहा था। इतनी सदियों बाद भी जनभाषात्व का वह गुण हमारी जनभाषाओं में विद्यमान है। इस मायने सबके अन्तःकरण में पालि के बीज सुप्तावस्था में विद्यमान हैं ही। बस, एक बारिश की आवश्यकता है। अब पालि-शिक्षण के इस उपक्रम के द्वारा पालि की बारिश आरम्भ हो गई है। अब सबके हृदय में स्थित बीज समय से अंकुरित होंगे, पौधे बनेंगे और अभ्यास करते-करते बड़े-बड़े वृक्ष बन जायेंगे।

इतिहास के आईने में झाँकने पर देखते हैं कि पालि इस देश में लम्बे समय तक नहीं रही, किन्तु भारत के बाहर पड़ौसी देशों में खूब फली-फूली और अनन्त लोक-मंगल में सहायक बनी। चाहे जो कारण रहे हो-पालि इस देश में नहीं रही, परन्तु इसकी सुगन्ध को इस देश के संस्कारों, रीति-रिवाजों, लोक-व्यवहार, लोकोक्तियों, मुहावरों, लोक-मान्यताओं, सन्त-वाणियों, सुभाषितों, सूक्तियों और शब्द-सम्पदा में सहज ही महसूस किया जा सकता है। इस मायने यह कहते चलें कि देष की समस्त भाषाओं के शब्द-कोष पालि-शब्दार्थ के साथ रचे जाने चाहिए और प्रकाशित किये जाने चाहिए। जैसे-मराठी-पालि शब्दकोष, हिन्दी-पालि शब्दकोष, गुजराती-पालि शब्दकोष, तेलुगु-पालि शब्दकोष इत्यादि।

एक और उदाहरण से इस बात को स्पष्ट करते हैं। जैसे किसी सुखी हुए घास-फूस के किसी विशाल ढेर को एक नन्हीं सी चिनगारी भी जलाकर भस्मीभूत कर देती है। ईंधन और अग्नि के मिलन से आग का गुब्बार उठने लगता है। उसी प्रकार पालि के इन थोड़े से दिनों के शिक्षण व अभ्यास से आप के भीतर स्थित विशाल पालि-ज्ञान का भण्डार जलकर आपके व्यक्तित्व को दैदीप्यमान कर देगा। पालि के निरन्तर शिक्षण और अभ्यास से पालि आपको अपनी-सी भाषा लगने लगेगी। वास्तविकता तो यह है कि यह आपकी ही भाषा है...आपकी अपनी। लेकिन व्यवहार और अध्ययन नहीं होने के कारण ये नई-सी लगती है। ये तो रही कुछ बातें जो पालि की सरलता और सहजता की। कुछ शिक्षण और अभ्यास के द्वारा इस बात को पुष्ट किया जायें और पालि-शिक्षण में एक कदम आगे बढें-
पालि भाषा-शिक्षण के इस क्रम में हम परिचय करना सीखेंगे। किसी भी भाषा में परिचय शिक्षण की पहली सीढ़ी होती है। पालि शिक्षण में भी यह क्रम अपनाया जाता है। पालि में परिचय करना बहुत आसान है।
यथा-
मम नाम पफ्फुल्लो
(मेरा नाम प्रफुल्ल)
यहाँ, मम = मेरा तथा नाम = नाम।
उक्त तीन शब्दों में से दो शब्द हमारे पूर्व परिचित शब्द हैं। पालि इतनी सरल भाषा है। जब भी आप अपना परिचय देते हैं या नाम बताते हैं, तो नाम के अन्त में ‘ओ’ का प्रयोग करें। (यह ‘ओ’ एक प्रत्यय है।) जैसे-
राहुल - राहुलो
राजीव - राजीवो
विजय - विजयो.....इत्यादि।
तो कोई ‘राहुल’ नाम का बालक या व्यक्ति अपना परिचय इस प्रकार देगा-
मम नाम राहुलो
अब आप भी अपना परिचय इसी प्रकार दे सकते हैं या अपना नाम बता सकते हैं। पालि परिचय का यह कदम बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा इसे बड़े ध्यान से सीखना चाहिए। इसके प्रति उपेक्षा, उदासी या आलस्य ना रखें। यह सबसे महत्त्वपूर्ण बात है।
इसी प्रकार नीचे कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं-
मम नाम आनन्दो
मम नाम विनयो
मम नाम गोतमो
मम नाम सामो
मम नाम कस्सपो
मम नाम अंकितो
मम नाम अनाथपिण्डिको
मम नाम भारतो
मम नाम कपिलो
मम नाम अमतलालो
मम नाम अजयो
मम नाम विकासो
मम नाम मोहनो.....इत्यादि।
इनके अतिरिक्त ऐसे भी अनेक नाम होते हैं, जो दो शब्दों को मिलाकर (सन्धि करके, जोड़कर) बनाये जाते हैं। ऐसे शब्दों के विषय में थोड़ी सी जानकारी कर लेना आवश्यक होता है। ऐसे नामों को थोड़े परिवर्तन के साथ पालि में प्रयोग किया जाता है। ऐसे ही कुछ नाम नीचे दिये जा रहे हैं-
(मम नाम ................................)
हिन्दी पालि
महेश महिसो (महा+इसो)
नरेश नरिसो
सुरेश सुरिसो
राकेश राकिसो
हितेश हितिसो
दिनेश दिनिसो
दिनेन्द्र दिनिन्दो (दिन+इन्दो)
राजेन्द्र राजिन्दो
मच्छिन्द्र मच्छिन्दो
शैलेन्द्र सेलिन्दो
नितेन्द्र नितिन्दो
बुद्धप्रिय बुद्धप्पियो (बुद्ध+पियो)
धम्मप्रकाश धम्मप्पकासो
इसी प्रकार के कुछ परिवर्तन नामों में होते हैं। आगे के शिक्षण तथा अभ्यासों में इन्हें तथा अन्य नामों तथा नियमों को स्पष्ट किया जायेगा। ध्वनि-परिवर्तन के नियमों के तहत इनके विषय में और अधिक स्पष्टता प्रकट की जायेगी।
ध्यान रखे पालि में सन्धि के नियम नियत नहीं है। कहीं-कहीं दो स्वरों के मेल से (सन्धि से) दीर्घता (बड़ी मात्रा) होती है और कहीं-कहीं ह्रस्वता (छोटी मात्रा) और कहीं-कहीं कोई बदलाव नहीं होता हैं।
उक्त सभी नाम पुरुषवाचक हैं। ये पुरुषों के नाम हैं।
स्त्री-वर्ग या उपासिकाएँ भी इसी प्रकार सहजता से अपना परिचय दे सकती हैं। जैसे-
मम नाम सुजाता
मम नाम लता
मम नाम सारिका
मम नाम संघमित्ता
मम नाम याचना
मम नाम संघप्पिया
मम नाम चित्तरेखा
मम नाम गीता
मम नाम सुरेखा
मम नाम सालिनी
मम नाम वेसाली
मम नाम अम्बपाली
इत्यादि....। इसी प्रकार अन्य स्त्रीवाचक नाम सीधे-सीधे बताये जा सकते हैं।

आपसे निवेदन है कि फेसबुक, वाटस्अप के माध्यम से आप अपना-अपना कमेंट में लिखें। ध्यान रहे गु्रप में पालि के इतर किसी भी प्रकार के मैसेज शेयर न किये जायें। ग्रुप की मर्यादा का ख्याल रखा जायें। कृपया अत्यन्त धैर्यपूर्वक एक-एक विषय को सीखते जायें। शीघ्रता न करें। शिक्षण-सामग्री या विडियोज की मांग करते हुए बार-बार मैसेज न करें। सभी शिक्षण-सामग्री क्रमवार ढंग से आप तक अवश्य ही पहुँचा दी जायेगी, किन्तु आपको धैर्यपूर्वक और संयत होकर सीखते जाना है।

बहुत शीघ्र ही आप पालि-शिक्षण शृंखला (पालि लर्निंग सीरिज) के तहत वीडियो, चित्र, सम्भाषण, इन्टरव्यू इत्यादि के माध्यम पालि का मनोरंजक, आकर्षक और ज्ञानप्रद पालि-व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर पायेंगे। धैर्य रखते हुए आप पालि सीखते जायें। इस समय उपस्थित परिस्थितियों तथा संसाधनों के अभाव के कारण यह कार्य कुछ समय ले रहा है और श्रम-साध्य हो गया है, किन्तु जब यह शृंखला आरम्भ हो जायेगी तो भाषा सीखने में बड़ी सहायक होगी। न केवल आपके लिए बल्कि बहुत सारे लोगों के लिए यह उपयोगी सिद्ध होगी। अतः आपसे विनती है धैर्य रखें और तत्परतापूर्वक भाषा सीखें।

एक बात और कहनी है। मेरे फेसबुक Prafull Gadpal पर मेरे द्वारा रचित गीत ‘पालिभासा अतिसरला’ चित्र और विडियो के रूप में उपलब्ध है। आप चित्र के माध्यम से इसे ध्यानपूर्वक पढ़े और वीडियो में गाये गये गीत को ध्यानपूर्वक सुने तथा उसे गाकर रिकार्ड करके वाट्स्-अप, फेसबुक या अन्य संचार माध्यमों द्वारा शेयर करें। इसका कारण यह है कि कोई भी भाषा को सीखने के चार स्तर होते हैं-सुनना, बोलना, लिखना और पढ़ना। आप पढ़-लिख तो लेते हैं, किन्तु सुनना और बोलना भी आवष्यक होता है। इन चारों चरणों को यह अभ्यास पूर्ण करेगा और पालि-गीत के माध्यम से हम समाज में पालि का प्रचार भी कर पायेंगे।

ध्यान रखें अनुस्वार ( ं या निग्गहित या बिन्दु) का उच्चारण संस्कृत के ‘म्’ या ( ं ) की तरह न हो यानि अन्त में ‘आधे म’ का उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ( ं ग् ) की तरह उच्चारण किया जाना चाहिए। ( ं ) का उच्चारण करते समय मुँह खुला हुआ रहना चाहिए, बन्द नहीं होना चाहिए। इस हेतु संलग्न आॅडियो सुने।
पुनश्च-एक निवेदन है कि जो लोग वीडियो एडिटिंग करना जानते हो, वे इस कार्य में मेरी मदद कर सकते हैं। कृपया वे मेरे व्यक्तिगत मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क करने का कष्ट करें।

साधुवादो
डाॅ. प्रफुल्ल गड़पाल
Dr. Prafull Gadpal
Mob. -. 8126485505

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