Bhadantacharya Buddhadatta Pali Promotion Foundation

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पालि-भीम-वन्दना
(Pali Bhim-Vandana)
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(वसन्ततिलकाच्छन्दो)
रचयिता - डा. प्रफुल्लगडपालो

रम्माननं नरवरं पदुमक्खिमन्तं
विक्कन्त-धम्मवरियं सुमनाभिरामं।
सीलेहि तुल्ल-धवलं हिमवन्त-राजं
वन्दामि भीम-पवरं सुभ-लक्खणं तं ।।1।।
पदञ्चयो - रम्माननं, नरवरं, पदुमक्खिमन्तं, विक्कन्तधम्मवरियं, सुमनाभिरामं, सीलेहि तुल्ल-धवलं हिमवन्तराजं, सुभलक्खणं (च) तं भीमपवरं वन्दामि।
सुन्दर मुख वाले; पुरुषोत्तम; पद्म (कमल) जैसे नेत्रों वाले; विक्रान्त (शौर्य) गुणों से समन्वित होने से वर (वरेण्य); चित्ताकर्षक (पुष्प की तरह सुन्दर); शीलों में हिमालय पर्वत की तरह शुभ्र (धवल) दिखाई देने वाले तथा शुभ-लक्षणों से युक्त (सर्वांग-सुन्दर) उन श्रेष्ठ भीमराव को मैं वन्दन करता हूँ।

पञ्ञाधरं सुगतिकं मन-काय-धम्मा
वाचाय चित्त-कथिकं वदतं वरं च।
कन्ता च कन्त-विचया गुणसागरं तं
भीमा च भीम-गुणका पणमामि भीमं ।। 2 ।।
पदञ्चयो – पञ्ञाधरं; वाचाय मन-काय-धम्मा सुगतिकं; वदतं वरं च; चित्तकथिकं; कन्ता कन्तविचया च गुणसागरं; भीमा भीमगुणका च तं भीमं पणमामि।
प्रज्ञावान्; वाणी, चित्त और शरीर के कर्मों की सुन्दर गति वाले; उपदेशकों में श्रेष्ठ; प्रभावशाली वक्ता; हृदय के कोमल-कान्त सद्गुणों के समूह के कारण गुणसागर तथा विपरीत परिस्थितियों में अडिग रहकर विरोधियों के लिए रूद्रता धारण कर लेने वाले भीम (रौद्र) गुणों से समन्वित (भीम-कान्त-गुणान्वित) अद्भुत व्यक्तित्त्व भीमराव को मैं प्रणाम करता हूँ।

सब्बत्थ सच्चकथिकं पियदस्सनं च
सत्तुन्दमं विधिविदुं वर-बुद्धिमन्तं।
खेमङ्करं सुभकरं मम वन्दनं नं
भीमं सुभीम-वदनं अति-सूरयोधं ।। 3 ।।
पदञ्चयो - सब्बत्थ सच्चकथिकं; पियदस्सनं; सत्तुन्दमं; विधिविदुं; वरबुद्धिमन्तं; खेमङ्करं; सुभकरं; सुभीमवदनं अति-सूरयोधं च नं भीमं मम वन्दनं (अत्थि)।
हर जगह व हर परिस्थिति में सत्यभाषण करने वाले; प्रियदर्शी; शत्रु (विरोधियों) का दमन करने वाले; कानून तथा धर्मशास्त्र रूपी विधि के प्रकाण्ड विद्वान्; बुद्धिमन्तों के सरताज; सभी जनों के लिए कुशल-क्षेम करने वाले; शुभ कर्म को करने वाले; विशाल शरीर वाले अतीव शूर-वीर उन भीमराव को मेरा वन्दन है।

वेसम्म-भाव-बहुलं जन-मानसं तु
सङ्कप्पितं विधमनं इह येन दिस्वा।
कत्वा च नासक-वुधं वर-संविधानं
सन्नासितं जयतु सो मम भीमरावो ।। 4 ।।
पदञ्चयो - वेसम्मभावबहुलं जनमानसं दिस्वा तु येन इह (तस्स) विधमनं सङ्कप्पितं, (ततो) नासकवुधं वर-संविधानं च कत्वा (तं) सन्नासितं, सो मम भीमरावो जयतु।
पग-पग पर वैषम्य-भाव से भरे हुए समाज के मानस को देखकर उन्होंने उस विषमता का समूल-नाश करने का संकल्प लिया। फिर अवसर आने पर इस बुराई को समाप्त करने वाला श्रेष्ठ शस्त्र यानि सर्वोत्कृष्ट भारतीय-संविधान बनाकर उसे समाप्त किया। समस्त मानव-समाज को पूर्ण गरिमा तथा स्वाभिमान के साथ जीवन जीने हेतु मार्ग प्रशस्त करने वाले संविधान-शिल्पी मेरे भीमराव अम्बेडकर की जय हो।

नारीन तारकवरो पतितान नाथो
दाता तुवं असरणा च जिघच्छिता च।
एको’व सब्बपियको मम भीमराव!
नामेमि पादकमले च सदा नलाटं ।। 5 ।।
पदञ्चयो - तुवं नारीन तारकवरो पतितान नाथो (च असि)। असरणा जिघच्छिता च दाता (असि)। (हे) मम भीमराव ! एको’व सब्बपियको (असि)। (तव) पादकमले च (अहं) सदा नलाटं नामेमि।
नारियों को अधिकार दिलाने वाले तारनहार और पतितों के नाथ हो; जिनकी कोई शरण न होने तथा भूख से तड़पते होने पर तुम ही आश्रय-दाता हो। इस प्रकार हे मेरे भीमराव! एक ही तुम ही संसार में सबके लिए प्रिय हो। मैं तुम्हारे कमल-सदृश चरणों में सदा सिर नवाता हूँ।

चित्ते हि यस्स सततं परदुक्ख-चिन्ता
अक्खासि सन्ति-सुखिता-समता नु लोके।
उद्धारको’नवरतं परि-पीडितानं।
भीमं नमामि करुणा-पयनिज्झरं नं ।। 6 ।।
पदञ्चयो - यस्स चित्ते हि सततं परदुक्खचिन्ता (अहोसि), लोके नु (यो) सन्ति-सुखिता-समता अक्खासि, अनवरतं परिपीडितानं (यो) उद्धारको, नं करुणा-पयनिज्झरं भीमं (अहं) नमामि।
जिनके चित्त में निरन्तर दूसरे के कष्टों की चिन्ता थी; जिन्होंने लोगों को शान्ति, समता और सुखिता की शिक्षा प्रदान की; जिन्होंने हजारों वर्षों से प्रचलित शोषण की परम्परा से पीड़ित और दुःखी जनों का उद्धार किया; ऐसे करुणा के शीतल जल वाले झरने के समान भीमराव को मैं नमन करता हूँ।

कायेन किञ्च मनसा वचनेन एको
साधु सदा नय-युतो चरितेन धीरो।
न क्वापि भेद-मतिमा न च निन्नभावी
कारेयि सब्ब-समतं पणमामि भीमं ।। 7 ।।
पदञ्चयो - (यो) कायेन मनसा किञ्च वचनेन एको (आसी); चरितेन सदा साधु, नययुतो धीरो (च आसी)। क्व अपि (सो) न भेदमतिमा, न च (तस्स) निन्नभावी (आसी), (सो) सब्बसमतं कारेयि, (तं) भीमं नमामि।
जिनके शरीर, मन और वाणी के कर्म समान थे। अर्थात् वे जैसा सोचते थे, वैसा बोलते थे तथा वैसा ही व्यवहार में कर्म करते थे। उनमें मन, वाणी और व्यवहार का अद्भुत संगम था। साध्य को पाना उनके लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण था, जितना साधन की पवित्रता। वे सर्वत्र साधु-स्वभावी, नीतिमान् तथा धीर थे। वे कहीं भी भेद-बुद्धि वाले नहीं रहें तथा ना ही उनके मन में कभी क्षुद्र-विचार पैदा होते थे। समता के प्रतीक उन्होंने संविधान रचकर सर्वत्र समता लाई। उन भीमराव को मैं नमन करता हूँ।

दिक्खाय नागपुरके सुमहे विसाले
बुद्धं च धम्म-सहितं सरणं सुसङ्घं ।
सद्धिञ्चरेहि च गतं नहुतेहि सद्धिं
दुक्खन्तकं पटि नमे निधि-पारवाहिं ।। 8 ।।
पदञ्चयो - नागपुरके दिक्खाय विसाले सुमहे नहुतेहि सद्धिञ्चरेहि च सद्धिं बुद्धं धम्मसहितं सुसङ्घं च सरणं गतं; दुक्खन्तकं; निधि-पारवाहिं (च भीमरावं) पटि नमे।
14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर के विशाल एवं ऐतिहासिक दीक्षोत्सव में अन्य समस्त बोधिसत्त्वों की तरह अपने हजारों अनुयायियों के साथ बुद्ध, धम्म और संघ की शरण गये हुए; हजारों वर्षों से पीड़ित एवं दुःखी जनों के दुःखों का अन्त करने वाले; दुःख-सागर से पार लगाने वाले भीमराव के प्रति मैं नमन अर्पित करता हूँ।

लोकम्हि वन्दित-गरुं सुगतं मुनिन्दं
अक्खात-धम्ममखिलं सुखदं पणीतं।
सङ्घं विसुद्ध-पथिकं अभिवन्दियाहं
भीमं नमामि निपकं धज-वाहकं तं ।। 9 ।।
पदञ्चयो - लोकम्हि वन्दितगरुं, मुनिन्दं, सुगतं (बुद्धं); सुखदं पणीतं (च) अखिलं अक्खात-धम्मं (च); विसुद्ध-पथिकं सङ्घं (च) - अभिवन्दिय अहं निपकं धज-वाहकं (च) तं भीमं नमामि।
लोकवन्दित महान् गुरु, मुनि-श्रेष्ठ, सुगत बुद्ध; सुख प्रदान करने वाले व श्रेष्ठ तथा ठीक तरह से आख्यात (व्याख्यायित) धम्म तथा निब्बाण के विसुद्ध-मार्ग पर आरुढ़ संघ -- इन तीनों को वन्दन करके मैं विश्व के महान् विद्वान् व बौद्ध-परम्परा के ध्वज-वाहक बोधिसत्त्व डाॅ. अम्बेडकर को नमन करता हूँ।

दिप्पन्ति चन्द-रवयो परमे’न्तलिक्खे
भीमस्स ठस्सति यसो जगती-तले हि।
यावं पणीतमरियं परि-गायितब्बं
भीमायनं सुचरितं सुयसप्पफुल्लं ।। 10 ।।
पदञ्चयो - यावं हि परमे अन्तलिक्खे चन्द-रवयो दिप्पन्ति; (तावं) जगतीतले भीमस्स यसो ठास्सति। (इमं) पणीतं अरियं सुचरितं सुयसप्पफुल्लं (च) भीमायनं परिगायितब्बं।
जब तक ऊपर अन्तरिक्ष में चाँद और सूर्य प्रकाशित होते रहेंगे, तब तक दुनियाँ में भीमराव का यश सुस्थिर रहेगा। इस श्रेष्ठ, आर्य, सर्वत्रा प्रसरित सुयश युक्त तथा सुन्दर चरित वाले भीमराव के कल्याण-मार्ग का हमें नित्य संगायन करना चाहिए।

(मेरा अस्तित्त्व जिनके कारण है और रोम-रोम जिनका कृतज्ञ है -- उन्हीं पर रची गयी रचना उन्हें ही सादर समर्पित ...)

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